________________ 74 ] नित्य नियम पूजा // अथ जयमाला // दोहा षोडशकारण गुण कर, हरै चतुरगति वास / पापपुण्य सब नाश कै, ज्ञान भानु परकाश / / दरश विशुद्ध धरै जो कोई, ताको आवागमन न होई / विनय महा धारे जो प्राणी, शिव वनिताकी सखी बखानी / / शील सदा दृढ़ जो नर पाले, सौ और नकी आपद टाले / ज्ञानाभ्यास करे मन माहीं, ताके मोह-महातम नाहीं // 3 // जो संवेग-भाव विस्तारै, सुरग-मुक्ति पद आप निहारे / दान देय मन हर्ष बिशेख, इह भव जश परभव सुख देख 4 जो तप तपै खपै अभिलाषा, चूरे कर्म शिखर गुरु भाषा / साधुसमाधि सदा मन लावै, तिहूँ जग भोग भोगि शिवजावै 5 निश दिन वैपावृत्य करैया, सा निश्चय भवनीर तिरैया / जो अरहत-भक्ति मन आनै सो जन विषय कषाय न जाने // 6 जो आचारज भक्ति कर है, सो निरमल आचार धर है। बहुश्रुतवन्त-भक्ति जो करई सो नर संपूरण श्रुत धरइ / / 7 / प्रवचन भक्ति कर जो ज्ञाता, लहैं ज्ञान परमानन्द-दाता / षट् आवश्यक नित जो साधे, सो ही रत्नत्रय आराधे / 8 / धर्म प्रभाव करे जे ज्ञानी, तीन शिव मारग रीति पिछानी। वत्सल अंग सदा जो ध्यावै, सो तीर्थंकर पदवी पावै / 9 / दोहा-ये ही सोलह भावना, सहित धरै व्रत जोय / देव-इन्द्र-नर-वंद्य पद, धानत शिव पद होय / / 7 ह्रीं दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यः पूर्णाऱ्या निर्व० //