________________ नित्य नियम पूजा पंचमव्याख्याप्रज्ञपति दरशं, दोय लाख अट्ठाइस सहसं / छट्ठो ज्ञातृकथा विस्तारं पांच लाख छप्पन हजारं / 3 / सप्तम उपासकाध्यायनंग. सत्तर सहस ग्यारह लख भंगं / अष्टम अन्तकृतं दस इसं, सहस अट्ठाइस लाख तेईसं / 4 / / नवम अनुत्तरदश सुविशालं, लाख बानवै सहस चवालं / दशम प्रश्न व्याकरण विचारं, लाख तिरानवे सोल हजारं / / ग्यारम सूत्रविपाक सुभाखं, एक कोड़ चौरासी लाखं / चार कोड़ि अरु पन्द्रह लाखं, दो हजार सब पद गुस्शाखं / ' द्वादश दृष्टिवाद पन भेदं, इकसौ आठ कौडिपन वेदं / अडसठ लाख सहस छप्पन है, सहित पंचपद मिथ्याहन है। इकसो बारह कोड़ि बखानों, लाख तिरासो ऊपर जानों। ठावन सहस पच्च अधिकाने, द्वादश अंग सर्व पद माने / / 8 कोड़ि इकावन आठहि लाखं, सहस चरासो छहसो भाखं साड़े इक्कीस श्लोक बताये, एक एक पद के ये गाये / / 9 / / दोहा-जा वानी के ज्ञानते, सूझे लोक अलोक / 'द्यानत' जग जयवन्त हो, सदा देतहों धोक / / 10 // ॐ ह्रीं जिनमुखोद्भवसरस्वतोदेव्यै पूर्णाध्यं निर्व० स्वाहा / गुरु पूजा दोहा-चहुँ गति दुखसागरविष तारनतरन जिहाज / रतनत्रयनिधि नगन तन, धन्य महा मुनिराज ||1: ॐ ह्रीं श्री आचार्योपाध्याय-सर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्रावतरावतर संवौषट् / ॐ ह्रीं श्री आचार्योपाध्याय--सर्वसाधुगुरुसमूह / अत्र