________________ नित्य नियम पूजा [ 49 अष्टम वसुधा पानेको करमें ये आठों द्रव्य लिये / सहज शद्ध स्वाभाविकतासे निजमें निज गुण प्रगट किये। ये अर्घ समरण करके मैं, श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊ। अर्घ / 9 // जयमाला // नशे घातिया कर्म अर्हन्त देवा, करें सुरअसुर नर मुनि नित्य सेवा। दरश जान सुख बल अनंतके स्वामी, छियालीस गुणयुक्त महाईश नामी। तेरी दिव्य वाणी सदा भव्य मानी, महा मोह विध्वंसिनी मोक्षदानी / अनेकान्त मय द्वादशांगी बखानी, नमो लोक माता श्री जैन वाणी.।। विरागी अचारज उवज्झाय साधु दरश, ज्ञान भंडार समता अराधू / नगन वेशधारी सु एका बिहारी निजानन्द मंडित मुकति पथ प्रचारी / विदेह क्षेत्रमें तीर्थंकर बीस राजे, विरहमान बन्दू सभी पाप भाजें / नम सिद्ध निर्भया निरामय सुधामी अनाकुल समाधान सहजाभिरामी। छन्द / देवशास्त्र गुरु बीस तीर्थंकर, सिद्ध हृदय बिच धरले रे / पूजन ध्यान गान गुण करके, भवसागर जिय तरले रे // ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरुभ्यः श्री विद्यमान-विंशति तीर्थंकरेभ्यः अनन्तानन्त-सिद्ध परमेष्ठिभ्यः जयमाला पूर्णाज़ निर्वपामीति /