________________ 48] नित्य नियम पूजा पुष्प सुगन्धीसे आतमने, शील स्वभाव नशाया है। मन्मथ बाणोंसे बिंद करके चहुँ गति दुःख उपजाया है। स्थिरता निजमें पानेको, श्री देव-शास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान थी बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं ।पुष्पं / 4. पट रस मिश्रित भोजनसे, ये भूख न मेरी शान्त हुई / आतम रस अनुपम चखनेसे, इन्द्रिय मन इच्छा शमन हुई / भूख सर्वथा मेटनको श्री देव-शास्त्र गुरुको ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं नैवेद्य५: जड़ दीप विनश्वरको अबतक, समझा था मैंने उजियारा / निज गुण दरशायक ज्ञान दीपसे, मिटा मोहका अंधियारा। ये दीप समर्पित करके मैं, श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं / दीपं / 6. ये धूप अनलमें खेने से कर्मोको नहीं उलायेगी / निजमें निजकी शक्ति ज्वाला, जो राग द्वेष नशायेगी / उस शक्तिदहन प्रकटानेको, श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं। धूपं 7 पिस्ता बदाम श्रीफल लवंग, चरणन तुम ढिंग मैं ले आया। आतमरस भीने निजगुण फल, मम मन अब उनमें ललचाया : अब मोक्ष महाफल पानेको श्री देवशास्त्र गुरुको ध्याऊ / विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊ / फलं 8