________________
नियुक्ति पंचक
३०
में उल्लेख है—'इति दशवैकालिकनिर्युक्तिः समाप्ताः ।' यह प्रति सं० १४४२ कार्तिक शुक्ला शुकवार को नागेन्द्र गच्छ के आचार्य गुणमेरुविजयची के लिए लिखी गयी. ऐसा उल्लेख उक्त प्रति के अंत में मिलता है। प्रति में पाठ की दृष्टि से कुछ स्थानों पर अशुद्धियां थीं, उनको हमने ठीक कर दिया है। १. ऐज्जंभवं गणधरं, जिणपडिनादंसणेणं पडिबुद्धं । मगपियरं दसकालियस्स निज्जूहगं वंदे | २. मणगं पडुच्च सेज्जंभवेण निज्जूहिया दसज्झयणा । वेयालियाए ठविया, तम्हा दसकालिय नाम ।। ३. छहि मासेहिं अहीयं अज्झयणमिणं अमणगेणं ।
समाही ।।
४. आनंदअंसुपायं कासी
छम्मासा परिमाओ, अह कालगओ सेभव: य वियारणा
तहिं
थेरा ।
सभद्दस्य पुच्छा, कहणा ५ तुम्हारिलो वि मुणिवरो, जइ ता साहु तुमं चिय धीर ६. दतअज्झयणं समर्थ, लहुआउयं च नाउं ७. स्याओ दो चूला, आणीया
संघे ।।
छलिज्जति । समल्लीणा ।।
एवं !
अड्डाए मणगसीसस्स ।। जक्खिणीए अज्जाए । भवियजणविबोहडाए । ।
सीमंधरपासओ,
८. खुल्लोलण दीहम्मि य, अहं च काराविओ उ अज्जाए । रमणीए कालगओ, अज्जा संवेगमुन्ना ।। ९. कहाण संजाये, रिसिहिंता पाविया मए पावे | तो देवया विणीया, सीगंधरसामिणा पसे । : १०. सीमंधरेण भणियं अज्जे ! सुल्लो गओ महःकप्पे ।
मा जूरिसि अप्पाणं, धम्मम्मि निच्चला
होसु ।।
चूलिका की रचना का इतिहास बहुत रोचक है। स्यूलिभद्र एक प्रभावशाली आचार्य हुए हैं। उनकी यक्षा आदि सात बहिनों ने भी दीक्षा ली थी। श्रीयक उनका छोटा भाई था। वह शरीर से बहुत कोमल था, भूख को सहन करने की शक्ति नहीं थी अत: वह उपवास भी नहीं कर सकता था ।
एक बार पर्युषण पर्व पर यक्षा की प्रेरणा से श्रीयक मुनि ने उपवास किया। दिन तो सुखपूर्वक बीत गया लेकिन रात्रि को भयंकर वेदना की अनुभूति हुई । भयंकर वेदना से मुनि श्रीय्क दिवंगत हो गये। भाई के स्वर्गवास से यक्षा को बहुत आघात लगा । मुनि की मृत्यु का निमित्त स्वयं को मानकर वह दुःखी रहने लगी और संघ के समक्ष स्वयं को प्रायश्चित्त के लिए प्रस्तुत किया। संघ ने साध्वी यक्षा के निर्दोष घोषित कर दिया लेकिन उसने अन्न ग्रहण करना बंद कर दिया। संघ ने कायोत्सर्ग किया।
१.१३ । २. दर्शने १४ ।
मोहपिसाएण धीरिमा कं सेज्जं भवसूरिविरइयं
३ दशनि ३४८ ।
४. दशनि ३८९ ।