Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आज का नाहटा वंश शतियों पूर्व 'नाहट्ट वंश' नामसे अभिहित होता था । यह वंश उपकेश ओसवाल वंशकी शाखाओंमेंसे एक शाखा है । नाहटा वंशोत्पन्न महानुभावोंकी सामाजिक प्रतिष्ठा, अद्वितीय उदारता और आप्तपुरुषोंके प्रति श्रद्धावनत विनय-शीलता सदैव गेय रही है । चतुर्दश शती में अनूदित एक ग्रन्थ में पुष्पापीडका वर्णन पठितव्य है :
यस्मिन् जाग्रत्पुरुषसुमनस्तोमसौरभ्यभंगी, भोगाकृष्टः बुधमधुकरैस्तन्यते कीर्तिगीतिः । पृथ्वीकान्ताकमनकरणत्राणशृंगारकोऽसौ, पुष्पापीडो जगति जयति श्रीमदूकेशवंशः ॥ जिनके लोकप्रसिद्ध पौरुषरूपी पुष्पके समूहकी सुगन्धि प्राप्त करनेके लिए आकृष्ट विद्वान्रूपी भ्रमर कीर्तिगान करते हैं, जो पृथ्वीरूपी नायिकाकी कामनाओंका पूरक है; उसकी रक्षाका प्रसाधक है; ऐसा शोभा सम्पन्न, उकेशवंशोद्भव पुष्पापीड संसारमें सर्वोत्कृष्ट है; उसकी जय हो । नाहटा वंशोद्भव उदयी आसनागका चित्रण भी ध्यातव्य है । कवि ने आसनागके अनुपम व्यक्तित्वमें कर्मठता, शालीनता और सदाशयता का जो समवेत स्वरूप प्रस्तुत किया है, वह संस्कृत साहित्येतिहास की अनुपम निधि है-
तस्मिन् सिद्धिवधू वशीकृतिविधौ गाढानुबन्धान्न्यधात्, यः स्वस्वान्तवसुन्धरान्तरतुलं सम्यक्त्वसत्कार्यणम् । सर्वांगीणविभूषणं त्वचकलच्छीलं शरीरेऽसकौ, पुन्नागोऽभवदासनागउदयी, नाहट्टवंशोद्भवः ॥ ३
उसने जीवन में सफलता प्राप्त की थी और भाग्यको भी वश में कर लिया था । उसके अतिशय प्रेम के कारण जिसने पृथिवी के समान अपने अन्तःकरण को उसमें लगा दिया था, जो सत्य रूपसे सत्कार्य को करता था; जिसके शरीर में सर्वांग का भूषणशील सदा विद्यमान था, ऐसा पुरुषों में श्रेष्ठ 'नाहट्ट' वंश में उत्पन्न उदय आसनाग हुआ ।
प्राचीन साहित्य में यत्र-तत्र उपलब्ध नाहटा वंशोत्पन्न वरेण्य व्यक्तियोंकी प्रशस्तियोंके अध्ययन-मननसे यह निष्कर्षनिचय असम्भव नहीं है कि प्राकरणिक पुरुष अतीव गुरुभक्त होते थे । वे गुरूपदेश का सश्रद्धा श्रवण करते थे और उसे व्यवहारमें लाकर अपना जीवन सफल बनाते थे । निम्नांकित उद्धरण उपयंकित तथ्यका परिचायक है
इति हितमुपदेशं सन्मरन्दावभास, जिनकुशलयतीन्दोर्वक्त्र पद्मान्निरीतम् ।
मधुकर इव वर्यानन्दसन्दोहसिन्धु, स्म पिवति वत वेगादीश्वरः श्राद्धरत्नम् ॥ श्रीजिनकुशल यतीन्द्ररूपी चन्द्रमाके मुखरूपी कमल से निकले हुए पुष्पधूलिके समान हितकर उपदेशोंको भ्रमरके समान श्रद्धालु, श्रेष्ठ आनन्दोंके सागर नाहटा वंशोद्भव 'श्री ईश्वर' सदा तीव्रतासे पान किया करते थे । जैसी भावभक्ति, उदाराशयता और सच्चरित्रता हमें नाहटा नर - रत्नोंमें देखने-पढ़ने को मिलती है, वैसी ही धर्म-भावना, पवित्रता और श्रद्धावृत्ति इस वंश की वीराङ्गनाओं में भी उपलब्ध होती हैं ।
१ श्रीमदुपकेशवंशः सद्वंशः शोभते सुपर्वाढ्यः । नानाशाखोपगतः, सरसश्चि तुनो कठिनः ॥ तत्र च 'नाहटा ' शाखा समस्ति तत्रापि देवगुरुभक्तः । आवश्यक सूत्रवृत्ति । २ प्रज्ञापना सूत्रवृत्ति, श्रीजेसलमेरुदुर्ग स्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थ भंडार सूचीपत्र । ३. 'श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकायां' श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थ भंडार सूचीपत्र क्रमांक २८ । ४. उपाध्याय लब्धिनिधान रचित प्रज्ञापना टीका, श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थ भंडार ।
६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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