Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 01
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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सविवरण मूलशुद्धि प्रकरण चतुर्थ स्थानके महारिद्धिसमुदयं पाविस्सई' । तीए वि ‘एवमेय'ति पडिवज्जिऊण बद्धो सउणगंठी। तओ संपजंतसयलमणोरहा पसूया नियसमए सव्वंगसुंदराहिरामं दारयं । वद्धाविओ सुहंकराहिहाणाए सदासचेडीए सेट्ठी । तीसे य पारिओसियं दाऊण कयं महावद्धावणयं । अवि य
वजइ तूरु गहिरसद्दाउलु, नच्चइ वारविलासिणिपाउलु । दिज्जइ दाणु अवारियसत्तउ, एइ महायणु वद्धावंतउ ।।५।। आयारिमइ समत्थई किजहिं, सयणाणि य उवयार लइजहिं । मेल्लाविजहिँ सयलई बंदई, पडिलाहिजेहिँ मुणिवरविंदई ।।६।। जिणवरबिंबई संपूइजहिं, सयण असेस वि सम्माणिजहिं ।
अहवा किं वण्णिज्जइ तेत्थु, संतेऊरु निवु आगउ जेत्थु ।।७।। एवं च कमेण वत्ते वद्धावणयमहसवे, पत्ते दुवालसमवासरे कयं दारयस्स नामं देवदिण्ण त्ति। पवड्डमाणो य जाव जाओ अट्ठवारिसिओ ताव समप्पिओ कलायरियस्स । गिण्हए असेसाओ कलाओ।
अण्णया य अणज्झयणदिणे उवविठ्ठो कहिंचि वक्खाणे । तत्थ य तम्मि समए वक्खाणिज्जए दाणधम्मो यथा
दानेन भूतानि वशीभवन्ति, दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् । परोऽपि बन्धुत्वमुपैति दानाद्, दानं हि सर्वव्यसनानि हन्ति ।।८।। दानेन चक्रित्वमुपैति जन्तुर्दानेन देवाधिपतित्वमुच्चैः ।
दानेन नि:शेषयशोभिवृद्धिर्दानं शिवे धारयति क्रमेण ।।९।। एवं च सोऊण चिंतियमेएण 'अहो ! दाणमेवेगं इहलोए चेव सव्ववसणनिवारणक्खमं सिवसुहप्पयं चेत्थ वन्नियं, ता तत्थेव जत्तं करेमि' । तओ देइ चट्टाईणं खाउयमाइ । पुणो पवड्डमाणो भंडागाराओ घेत्तूण दव्वं देइ किविण-वणीमगाईणं, पूएइ जिणबिंबाइं, पडिलाहए भत्तिजुत्तो भत्तपोत्तपत्ताइएहिं साहु-साहुणीओ, सम्माणेइ साहम्मियजणं । तओ अइपभूयदव्वविणासं दह्ण विण्णत्तो सेट्ठी तहाभिमूयाहिहाणेण भंडागारिएण ‘सामि ! देवदिण्णो दाणवसणेण पभूयं अत्थसारं विणासेई' । सेट्ठिणा भणियं ‘मा निवारेहिसि, देउ, पुजिस्सइ दिंतस्स ई' । तेण भणियं 'कहमहं संखं
१. ला० निययस ॥ २. ला० 'मय समच्छहिं कि ॥ ३. सं० वा० सु० जइ स ॥ ४. ला० बंदहिं ॥ ५. सं० वा० सु० जइ मु ॥ ६. ला० वित्ते ॥ ७. ला० 'त्तपत्ताइ ॥ ८. सं० वा० सु० ‘पहाभूया ॥ ९. ला० वि ॥

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