Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 01
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi

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Page 293
________________ २७० सविवरण मूलशुद्धि प्रकरण चतुर्थ स्थानके जस्सनजइणो गिण्हंति कहविजत्तेणजोइयं दाणं । सो किं गिही?, मुहा होइ तस्स घरवासवासंगो' ॥२७॥ जह जहन लेइ बहुविहपयारभत्तं पणामियं पुरओ। तह तह किलम्मइ जणोजयगुरुचिंतालसो वियलो॥२८॥ इय निंदियनियविभवोवभोगसंपत्तिविहलजियलोओ। अकयत्थं पिव भण्णइ सयलं धण-परियणसमिद्धिं ॥ २९॥ एवं च विहरमाणो पंचदिवसूणछम्मासेहिं पविठ्ठो धणावहसेट्ठिमंदिरं, दिह्रो य पुव्ववण्णियसरूवाए चंदणबालाए, चिंतिउं पवत्ता, अवि य'सुकयत्था कयपुण्णाअहयं चिय एत्थ जीवलोगम्मि । जीए पारणगदिणे समागओएस परमप्पा ।।३०।। जइ कहवि एस भयवं एए मेऽणुग्गहेइ कुम्मासे । तो दुहपरंपराए दिण्णो हु जलंजली होइ' ।।३१।। जावेवं सा चिंतइ ता भयवं तीइ संठिओ पुरओ । भत्तिभरनिब्भरंगी समुट्ठिया झत्ति तो एसा ।।३२।। घेत्तूणं कुम्मासे जयगुरुणो अणुचिय' त्ति रोवंती । संकलबद्ध त्ति बहिं विणिग्गमं काउमचयंती ।।३३।। विक्खंभित्ता पाएहिँ एलुयं भणइ जयगुरुं भयवं! । गिण्हह जइ कप्पंती अणुग्गह मज्झ काऊण' ।।३४ । 'पुण्णोऽवहि' त्ति परिभाविऊण सामी वि उड्डए हत्थं । सा वि तैयंतेखिविउं पुणो वि परिभावए एवं । ३५/ 'पावेइ पुण्णभाई तइया भवणम्मि एरिसं पत्तं । जइया महल्लकल्लाणसंभवो जंतुणो होइ ।।३६।। कल्लाणपद्धईओ उवट्ठियाओपुणो विनणु मज्झ । सव्वाओजयपहुणा अणुग्गहोजंसयं विहिओ ।।३७/ जमभिग्गहपारणए भयवं पाराविओ जिणो वीरो । नर-सुर सिवसोक्खाइं तं नूणं हत्थपत्ताई' ।।३८।। ____एत्थावसरम्मि य 'अहो दाणं सुदाणं महादाणं' ति भणमाणेहिं सुरसमूहेहिं कओ आयासतले चेलुक्खेवो, निवडिया नहंगणाओ तियसतरुकुसुमवुट्ठी, विमुक्कं गंधोदयं मेहमंडलेहि, पवाइओ सुरहिसमीरणो, वज्जिया नहंगणे देवदुंदुही, विमुक्का सुरवरेहिं वररयणवुट्ठी, कहं चियसुरवरसहत्थपम्मुक्कविविहमणिकिरणरंजियदियंता । अण्णोण्णवण्णसोहा विहाइ सुरचावलट्ठिव्व ।।३९। परिमलमिलतभसलउलवलयपरिलितबद्धझंकारा । सुरतरुपसूणवुट्ठी निवडइ रइमासलदियंता ।।४०।। उच्छलइ ललियकरकमलतालणुव्विल्लसद्दसद्दालो । दुंदुहिरावो गंभीरवजिराउजसंवलिओ ।।४१।। इय ललियभुउव्वेल्लियकरमउलंजलिमिलंतसिरकमलं । सुरजयजयसंरावेण निवडिया रयणवुट्ठि त्तिा४२। ___ तओ तियसेहिं कओ पुणण्णवो कुंतलकलावो, विहियं पुव्वलावण्णरूवसोहासमुदयाओ वि अहिययरसोहं सरीरं । तओ समुच्छलिओ नयरीए हलहलारवो जहा ‘पाराविओ भयवं धणसेटिगेहे, निवडिया तत्थ रयणवुट्ठी'। एयं च जणपरंपराओ सोऊण समागओ सेट्ठी, सयाणियनरवई य । दिटुं च तं सैट्ठिणो गेहं दिसि दिसि निहित्तरयणसंचयं । विम्हउप्फुल्ललोयणो य भणिउं पवत्तो नरवई जहा १. ला० 'वन्ना, अ॥ २. ला० एहिं उवं(उबंरं) भणं ॥ ३. ला० तहते ॥ ४. सं० वा० सु० वरेहि रयण ॥ ५. ला० य(?र)वुव्वे ॥ ६. ला० त्ति ॥ कओ तियसेहिं पुण' । ७. सं० वा० सु० ए कोलाहला ॥ ८. ला० °णिओ नर ॥ ९. ला० सेट्ठिगेहं ॥

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