Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 10 . मृत्यु की दस्तक तृतीय खण्ड - आधुनिक ज्ञान तीसरे खंड में चिकित्सा विज्ञान, समाज विज्ञान और सांस्कृतिक विश्लेषण के आधार पर मृत्यु की अवधारणा को सहज रूप से प्रस्तुत किया गया है। ___काशी के प्रसिद्ध चिकित्सक श्री भानुशंकर मेहता यह मानते हैं कि आधुनिक विज्ञान ने बड़ी प्रगति की है, बहुत से रहस्य खुले हैं, जीवन की अवधि बढ़ी है, अकाल मृत्यु की घटनाएं कम हुई हैं फिर भी मृत्यु कब, क्यों और कैसे आयेगी, कोई नहीं जानता। नास्तिक और विज्ञानवादी के लिये मृत्यु का अर्थ है जीवन के हलचल की परिसमाप्ति, सांस के चरखे का रुक जाना। मृत्यु कब होती है? अनुसंधान से ज्ञात होता है कि मृत्यु एक क्षण नहीं होती है। चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से मस्तिष्क मूल (ब्रेनस्टेम) के कार्यकलाप बंद होने को मृत्यु कह सकते हैं क्योंकि इसी क्षेत्र में श्वास और हृदय संचालन, रक्त-संचार के केन्द्र होते हैं, यही वह केन्द्र है जो चेतना का द्वार है। यह बंद हुआ तो अटूट बेहोशी हो जाती है। शरीर में स्वचालित तंत्रिका (सिम्पैथेटिक) प्रणाली है जो शरीर के सभी कार्य संपादित करती है। वह भी इसी मार्ग में है। मस्तिष्क मूल ठप्प हुआ तो चेतना, बुद्धि, ज्ञान सभी का संयास हो जाता है। यह “मल" क्यों काम बंद करता है इसका विस्तत अध्ययन किया गया है। अब "हार्ट लंग” मशीन बन गयी है। रोगी को इस मशीन से जोड़ देने पर वह “जीवित” रहता है। (वर्षों जीवित रह सकता है)। मस्तिष्क के कोष बिना रक्त के, बिना ओषजन के तीन मिनट जीवित रहते हैं। अतः रक्त-संचार पुनः प्रारम्भ करने, हृदय की धड़कन में इससे अधिक विलम्ब हुआ तो रोगी जीवित तो हो जाता है पर चेतना- रहित, उद्भिज जैसा हो जाता है (वेजिटेटीव लाइफ)। हवा पानी भोजन देते रहे तो वह जीवित रहेगा पर निष्क्रिय। अब मृत्यु कहें या जीवन? विद्वान् लेखक ने मृत्यु से सम्बन्धित अनेक नये और पुराने प्रश्न उठाये हैं। अपने लेख के अन्त में कहते हैं - जीवन-मरण का खेल समझने में पुरातन और मूल का नहीं चश्मे का फर्क है। आइये कबीर के शब्दों में ललकारें "हम न मरै मरिहै संसारा" और नाटक में अपनी भूमिका निभाने के बाद महानिद्रा में खो जायें। यह लेख एक कार्यवैज्ञानिक और दार्शनिक के चिन्तन का निचोड़ है। गणित के अध्यापक श्री विजय कुमार राय ने प्रश्न उठाया है - मृत्यु सच्ची या झूठी? उनका मानना है कि जन्म और मृत्यु परस्पर विरोधी नहीं हैं। जीवन जीव की अपरिमित यात्रा है। सजीव का प्रारम्भिक छोर जन्म और अंतिम सिरा है मृत्यु / न्याय-दर्शन तथा आधुनिक प्राणि-विज्ञान की जीन्स और गुण-सूत्रों के सिद्धांत के आधार पर लेखक ने आत्मा की अमरता, कर्मवाद तथा पुनर्जन्म के भारतीय मत को पुष्ट करने का प्रयास किया है। कर्मवाद और जन्मान्तरवाद एक-दूसरे के पूरक हैं। जन्म-मृत्यु, कर्म, कर्मफल तथा आत्मा की अमरता संबंधी पूर्वी देशों की सदियों पुरानी धारणा को आज की आधुनिक जननिक एवं आनुवंशिक विद्या सत्य सिद्ध कर रही है। इस संबंध में भारत के पुनर्जन्मवादी और आधुनिक