Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ ज्योतिष शास्त्र में मृत्यु-विचार 105 (8) चतुर्थेश जिस राशि में हो उस राशि के स्वामी पर यदि चतुर्थेश की दृष्टि पड़ती हो अथवा वह चतुर्थेश के साथ हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है। जैसाकि चैतन्य महाप्रभु के साथ हुआ, देखें चक्र नीचे है - चं. केतु X3 F इनकी मृत्यु 1533 ई, के आषाढ़ सप्तमी रविवार को जल में डूबने से हुई थी। (9) यदि द्वितीयेश और षष्ठेश, शनि के साथ होकर 6, 8 वा 12वें भाव में हो तो जातक : की मृत्यु विषपान से होती है। इस तरह मृत्यु कारण के भी अनेक योग बताये गये हैं। रोगादि के सम्बन्ध में कहा गया है कि यदि अष्टम स्थान में कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो जातक की मृत्यु क्लेशकर नहीं होकर सुखमयी होती है। पर यदि अष्टम स्थान में पापग्रह बैठा हो तो मृत्यु पीड़ा के साथ होती है। जो ग्रह अष्टम स्थान में बैठा रहता है उसी ग्रह के धातु प्रकोपादि से अथवा उन ग्रहों के जाति-अनुसार मनुष्य की मृत्यु होती है। यदि अष्टम स्थान में सूर्य बैठा हो तो अग्नि एवं ज्वरादि से, यदि चन्द्र बैठा हो तो जल, दस्त की बीमारी या रुधिर-विकार रोग से, यदि मंगल बैठा हो तो अकस्मात् मृत्यु या हैजा, प्लेगादि से, यदि बुध बैठा हो तो ज्वर, चेचकादि से, और यदि बृहस्पति बैठा हो तो लाइलाज रोग से मृत्यु होती है। शुक्र के बैठे रहने से प्यास, शनि बैठा हो तो क्षुधा या अधिक भोजन होने के कारण मृत्यु होती है। इस विषय पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। इसी क्रम में सूर्यादि ग्रह के उच्च, नीच उच्च नवाँश, मित्र-गृही, शत्रु-गृही, शत्रु नवाँश, मित्र नवाँश, स्वगृही, वर्गोत्तम, शुभ षडवर्ग, क्रूर षडवर्गादि में होने पर अनेकानेक रोगों के कारण से मृत्यु संभव कही गयी है। उदाहरणार्थ चक्र दिया जा रहा है