Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ मृत्यु की अवधारणा - एक समाजशास्त्रीय अनुदृष्टि 179 तथ्य है जो मानव-जीवन से परे नहीं, मानव-जीवन की सम्भावना नहीं, अपितु जीवन की एक सीमा है। चूंकि मनुष्य का सम्बन्ध मानवीय तथ्यों से ही होता है अतः यह मानवीय तथ्य है। सारृ मृत्यु पर अपने विचार व्यक्त करते हुए यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि मृत्यु सम्पूर्ण मानव सम्भावनाओं का निरर्थक विकास है, मानव अहम् की अर्थहीन अंत्येष्टि है। मृत्यु मानव जीवन को कोई अर्थ प्रदान नहीं करती अपितु सम्पूर्ण जीवन की निरर्थकता को भली-भाँति प्रगट कर देती है। यह अर्थहीन है कि हम पैदा हुए थे और यह भी अर्थहीन है कि हम मरते हैं। इस प्रकार मृत्यु और जीवन के सम्बन्ध में मृत्यु की विशद् व्याख्या करने की जो अस्तित्ववादी दृष्टि है उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सिक्के के एक ओर किसी आकृति के "शीर्ष बिन्दु' और दूसरी ओर अधिभाग होता है। अर्थात् एक ओर जीवन और दूसरी ओर मृत्यु है। एक ओर मृत्यु है तो दूसरी ओर जीवन है। प्रत्येक समय जीवन के सभी दिनों में हम मरते रहने की प्रक्रिया में हैं, जबकि हम जीवित रहने की प्रक्रिया में भी हैं। इस दृष्टि से मृत्यु को आत्मा के रूप में मेरे अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं में अवश्य देखा जाना चाहिये अर्थात् मृत्यु को किसी भी समय पूरे जीवन की वर्तमान संभाव्यता के रूप में देखा जाना चाहिये। 5. वीइंग एण्ड नजिंगनेस, पृ. 695 | 6. वही, पृ. 6991

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220