Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan

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Page 193
________________ जन्म, जीवन एवं मृत्यु - - दीनानाथ झुनझुनवाला प्रकृति में सर्जन एवं विसर्जन की प्रक्रिया प्रत्येक क्षण घटित हो रही है। हम दशहरे पर माँ दुर्गा की मूर्ति का, एवं गणेश चतुर्थी पर गणपति की मूर्ति का सर्जन करते हैं एवं कुछ दिनों बाद उत्सव एवं उत्साहपूर्वक उसका विसर्जन करते हैं। सर्जन एवं विसर्जन के बीच का समय ही जीवन है। प्राणी मात्र के लिये भी यही प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। ___ जन्म के साथ भेद है। कोई राजा के घर पैदा होता है। कोई सुन्दर, गोरा, बुद्धिमान, त्यागी, वैरागी पैदा होता है तो कोई गरीब के घर, कुरूप, मूर्ख, रोगी, भोगी पैदा होता है। यानि पैदा होने के साथ ही जीवन में भेद आ गया। इसी प्रकार जन्म के बाद जो जीवन हमने पाया उसी जीवन में जितने मनुष्य हैं चाहे पुरुष हों या स्त्री, संबमें भिन्नता मिलेगी। कोई दो पुरुष एक प्रकृति के नहीं मिलेंगे। भिन्नता भी ऐसी कि एक महात्मा बुद्ध जैसा महान् त्यागी, वैरागी, टाटा, बिड़ला सरीखा उद्योगपति, नेहरू, पटेल सरीखा राजनीतिज्ञ, चन्द्रशेखर आजाद एवं राम प्रसाद बिस्मिल सरीखा बलिदानी आदि तो दूसरी ओर मानसिंह एवं मलखान सिंह सरीखा डाकू, रोगी, भोगी, क्रोधी, आदि उनके नाम लेने की आवश्यकता नहीं। कुछ ऐसे जीवन भी मिलेंगे जिनमें परिवर्तन आ गया यानी बुरे से अच्छे हो गये एवं अच्छे से बुरे हो गये। .. जीवन की समाप्ति की अवस्था का नाम मृत्यु है। जन्म एवं मरण के बीच की अवस्था का नाम ही जीवन है। मृत्यु के उपरान्त शरीर को कोई जलाता है और उसके पीछे उसकी मान्यता रहती है कि पंच-तत्त्व का यह शरीर अपने पंच तत्त्वों में विलीन हो जाये। कोई गाड़ता है तो उसकी मान्यता है कि कयामत के दिन आयेंगे तो यह पुनः जीवित हो उठेगा। कोई मुर्दे को पक्षियों के लिए सुलभ कराते हैं ताकि यह शरीर भी किसी के काम आ जाये। संन्यासी का शरीर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। कारण उसका पिण्डदान संन्यास लेने के वक्त हो जाता है। मृत्यु के बाद जो अमर हो जाते हैं उनकी मृत्यु भी मंगलकारी मानी जाती है। मृत्यु के बाद शरीर के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। जिस धर्म की जैसी

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