Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु का कर्मकाण्ड 119 असगोत्रः सगोत्रो वा यदि वा स्त्री यदि वा पुमान। प्रथमेहनि यो दद्यात् दशाहं दशगात्रं समापयेत / / उपरोक्त वचनानुसार जो व्यक्ति प्रथम पिण्डदान करता है उसे दस पिण्ड दान करने पड़ते हैं। यदि किसी कारणवश अधिकारी कर्ता के स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति दाहसंस्कार करता है तो उसे दस पिण्ड देना अनिवार्य है, साथ ही वास्तविक श्राद्धाधिकारी कर्ता को भी दसवें दिन दस पिण्ड देने होते हैं। पिण्ड-दान काल में पिण्डशेषान्न को पिण्ड के चारों ओर बिखेर दिया जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि मृतक जो प्रेत रूप में होता है श्राद्धपर्यन्त इसी पिण्ड-शेषान्न को ग्रहण करता है। 13. पंचनख अथवा क्षौरकर्म - लौकिक परम्परानुसार मृतक के अथवा दाह-संस्कार के दसवें दिन कर्ता सहित एक वंश के सभी लोग पंचनख अथवा क्षौरकर्म कराते हैं। पंचनख का आशय बाल, मूंछ, दाढ़ी, हाथों एवं पैरों के नाखूनों को कटवाने से है। क्षौरकर्म के लिये कुल, परिवार के लोग जो अशौच में होते हैं, तथा परिवार के शुभेच्छुगण भले ही वे किसी भी जाति एवं धर्म के हों सभी एक स्थान पर एकत्र होते हैं। क्षौरकर्म के उपरांत ये लोग कर्ता के साथ स्नान करते हैं। विवाहित कन्या तथा विगोत्री तीसरे दिन ही पंचनख कटवाते हैं। दसवें दिन सूर्यास्त के बाद श्राद्ध कर्ता को छोड़कर शेष सभी सगोत्र बांधव अशौच से मुक्त होकर पवित्र हो जाते हैं। . मध्यमा क्रिया दशगात्र के पश्चात् सपिण्डीकरण तक के श्राद्ध कर्म को मध्यमा क्रिया के अंतर्गत रखा गया 1. एकादशाह श्राद्धकर्म - शास्त्रों के अनुसार ग्यारहवें दिन षोड्शी श्राद्ध का प्रमुख श्राद्ध जिसे आद्य श्राद्ध कहते हैं, सम्पादित कराया जाता है। यदि मृतक की मृत्यु असामयिक अथवा किसी दुर्घटनावश होती है तो उसकी शांति के लिये नारायणबलि श्राद्धकर्म किया जाता है। मिथिला में नारायणबलि के स्थान पर एकादशाह श्राद्ध कर्म के पूर्व शैय्यादान, कांचन पुरुष, गोदान, छत्रदान, उपानहदान (जूतादान) ये पंचदान किये जाते हैं। 2. वृषोत्सर्ग श्राद्धकर्म - कुछ लोग एकादशाह श्राद्धकर्म के साथ वृषोत्सर्ग श्राद्ध भी करते हैं। इस विशेष श्राद्ध के पूर्व महाब्राह्मण की पत्नी का पूजन किया जाता है, तत्पश्चात् एक बछड़े को चक्र से दागकर चार बछियों के साथ साँड़ बनने के लिये छोड़ दिया जाता है। सनातन (हिन्दू) धर्मशास्त्रों के अनुसार सधवा स्त्री के श्राद्ध में वृषोत्सर्ग श्राद्ध का निषेध किया गया है। 3. सामान्योत्सर्ग अथवा वस्तुदान - हिन्दू लौकिक परम्परानुसार दाहकर्म के ग्यारहवें अथवा तेरहवें दिन मृतक की स्वर्ग प्राप्ति की कामना से ब्राह्मण को घरेलू