Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan

View full book text
Previous | Next

Page 170
________________ 160 .. मृत्यु की दस्तक होता है - छ: महीने की रात्रि और छ: महीने का दिन। जितने काल तक भगवान सूर्य उत्तरायण में रहते हैं, उतने काल तक उनका दिन रहता है और जितने काल तक वे दक्षिणायन में रहते हैं, उतनी लम्बी उनकी रात्रि होती है। उनके कालमान से उनकी आयु सौ वर्ष की होती है। इस प्रकार उनकी आयु हम लोगों की गणना से 36,000 वर्ष से ऊपर होती है। इस प्रकार से वे हमारी दृष्टि में एक प्रकार अमर से ही हैं, क्योंकि उनके एक जीवन-काल में हमारी हज़ारों पीढ़ियाँ समाप्त हो लेती हैं। जैसे एक मच्छर की दृष्टि में हम मनुष्य भी एक प्रकार से अमर ही हैं, क्योंकि हमारे जीवन-काल में मच्छरों की हज़ारों पीढ़ियाँ बीत जाती होंगी। उसी प्रकार हम मानवों तथा मर्त्यलोक के अन्य प्राणियों की अपेक्षा, जिनकी आयु हमारी अपेक्षा भी अल्प होती है, देवताओं का अमर कहलाना उचित है। इसी दृष्टि को सामने रखकर हमारे शास्त्रों में देवताओं का अमर कहलाना उचित है। इसी दृष्टि को सामने रखकर हमारे शास्त्रों में देवताओं के लिए "अमर" अथवा "अमर्त्य” तथा भूलोक के अन्य प्राणियों के लिए “मर्त्य अथवा मरणधर्मा', “मरणशील", आदि शब्दों का एवं भूलोक के लिए "मर्त्यलोक", आदि शब्दों का व्यवहार किया गया है। वास्तव में देवता भी हम मानवों की भांति ही "मर्त्य" अथवा मरणधर्मा ही हैं। स्वर्गलोक से गिरना ही उनकी मृत्यु है। श्रीमद्भगवद्गीता में इस बात का प्रमाण मिलता है - ते तं भुक्ता स्वर्गलोकं विशालं। क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति / / देव (स्वर्गलोक को प्राप्त हुए जीव) उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक को प्राप्त होते हैं। यही बात “अमृत” नामक दिव्य पेय के सम्बन्ध में भी समझनी चाहिए। “अमृत" के विषय में भी शास्त्रों में ऐसे वचन मिलते हैं कि अमृत को पी लेने पर जीव अमर हो जाता है। पुराणों में कथा आती है कि सृष्टि के आदि में अमृत की प्राप्ति के लिए भगवान् के आदेश से देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र-मंथन किया था और उस मंथन के फलस्वरूप प्रकट हुए अमृत के कलश को दानव लोग ले भागे। दानवों को अमृत-पान का अनाधिकारी समझकर - क्योंकि उनके अमर हो जाने पर जगत् का अमंगल ही होता - भगवान् ने मोहिनी रूप धारण कर उनसे अमृत का घड़ा ले लिया और वह अमृत देवताओं को पिला दिया, जिससे वे अमर हो गये। यज्ञादि में सोमपान का भी बड़ा माहात्म्य शास्त्रों में आया है। भगवती श्रुति कहती है - “अपाम सोमममृता अभूम” - हम लोगों ने सोमपान किया और उसके फलस्वरूप हम अमर हो गये। गीता में भी सोमपान के द्वारा इन्द्रलोक की प्राप्ति की बात नवम् अध्याय के 20वें श्लोक में आयी है। परन्तु इन सभी प्रसंगों में यह बात समझ लेने की है कि उपर्युक्त अमृत-पान अथवा सोमपान के द्वारा जिस अमरत्व की प्राप्ति की बात कही गयी है वास्तव में अमर हो जाना - जन्म-मृत्यु के अनादि बन्धन से सदा के लिए छूट जाना कुछ और ही

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220