Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 162. मृत्यु की दस्तक न सकाम कर्मों से, न सन्तान से और न धन से ही अमृतत्त्व की प्राप्ति सम्भव है, केवल त्याग से ही मोक्षार्थियों ने मोक्ष की प्राप्ति की है। ब्रह्मचर्य भी अमृत है। श्रुति कहती है - “ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाध्नतः' (ब्रह्मचर्य और तपस्या के बल से देवताओं ने मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर ली।) ब्रह्म की प्राप्ति में हेतु होने के कारण ही इसे ब्रह्मचर्य कहते हैं - “यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति” (कठोपनिषद् 1/2/15) / गीता में भी इस चरण को ज्यों-का-त्यों दुहराया गया है। कामनाओं का त्याग. निष्काम भाव भी अमृत है। श्रुति कहती है - सदासर्वे प्रमुच्यन्ते कामायेऽस्य हृदिस्थिताः / अथ मोऽभृतो भवत्यत्र ब्रह्म समश्नुते।। मनुष्य के अन्तःकरण में रहने वाली कामनाएँ जब निःशेष रह जाती हैं तब यह मरणधर्मा मनुष्य अमर हो जाता है और यहाँ - इसी जीवन में वह ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। गीता में भी निष्काम भाव को अनामय पद - अमृत पद की प्राप्ति का कारण बताया गया है - कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः / जन्म बन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम।। क्योंकि समत्वबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फूलकों - (उसकी कामना को) त्यागकर जन्म-रूप बन्धन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं। भगवान् फिर कहते हैं - प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान। आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।। अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली-भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। और स्थितप्रज्ञ पुरुष तत्काल भगवान् को प्राप्त कर लेता है। कामना से बन्धन और कामना के त्याग से भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति मिलती है। यह बात पाँचवें अध्याय में भी स्पष्ट शब्दों में कही गयी है - युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम। अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते।। कर्मयोगी कर्मों के फल को परमेश्वर को अर्पण करके भगवत्प्राप्ति रूप शान्ति को प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामना की प्रेरणा से फल में आसक्त होकर बंधता है।