Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
View full book text
________________ 168. मृत्यु की दस्तक नाश होने से होता है। स्थूल शरीर अपने प्रारब्ध यानी अपनी आयु या काल से बंधा हुआ है। व्यक्ति के अन्य आयाम, जैसे उसके नाम, अस्मिता, संसार में उसके नाम से जुड़ा हुआ उसका कर्म और उसकी आत्मा प्रायः काल से उस तरह नहीं बँधे हुए हैं जिस तरह उसका स्थूल शरीर। यहाँ आवश्यक है कि काल प्रसंग पर कुछ विचार किया जाये। ___ शारदा तिलक (एक तांत्रिक ग्रन्थ) के प्रथम पटल के पाँचवें श्लोक के अनुसार काल के आविर्भाव से पहले शिव निर्गुण हैं। जब प्रकृति क्षेत्र का उदय होता है तो शिव सगुण : हो जाते हैं। इसी पुस्तक के इसी पटल के सातवें श्लोक' के अनुसार प्रकृति क्षेत्र का उदय निर्गुण शिव में समाहित शक्ति के प्रति शिव के चैतन्य से प्रारम्भ होता है, फिर बिन्दु, नाद प्रभृति होते हुए सगुण रूप में प्रकृति क्षेत्र प्रगट दीख पड़ता है। इन श्लोकों की व्याख्या विस्तार से तांत्रिक-सिद्धों द्वारा की जा सकती है। मगर आशय यह है कि चेतना की संचार शक्ति यानी काली की अवधारणा शिव के अस्तित्व में होने से होती है। संचार होना काल का द्योतक है; संचार से पहले निर्गुणावस्था के शिव की स्थिति अंधकारमय या रात्रि है जहाँ काल की कोई कल्पना नहीं है। काली की उपस्थिति संचार से प्रारम्भ होती है - जब तक संचार है, काल है। इस प्रसंग में योगवासिष्ठ में राम कहते हैं कि “प्रत्यक्ष स्वरूप तो किसी को दिखलाई नहीं दिया करता है किन्तु . . . अनेक क्रियाओं के परिस्पन्दन से ही इसके स्वरूप का ज्ञान हुआ करता है। इस तरह स्थूल शरीर के संचार या स्पन्दन का अन्त उसके काल यानि आयु के अन्त होने से माना जाता है। - स्थूल शरीर की उपमा साधारणतः लोग वस्त्र से देते हैं कि जिस तरह वस्त्र के फट जाने से उसे त्याग दिया जाता है उसी तरह शरीर के जीर्ण-शीर्ण होने पर उसका परित्याग कर दिया जाता है, मनुष्य की आत्मा अजर-अमर है; गीता में उद्धृत श्रीकृष्ण का यह कथन सदियों से जन-मानस में बसा हुआ है। इस सन्दर्भ में कुछ और कहना आवश्यक नहीं। इसी तरह मनुष्य के नाम और कर्म के बारे में सोच बनी हुई है। हिन्दू धर्म परम्परा में प्रत्येक व्यक्ति का अपने जीवन-क्रम में पुरुषार्थ का निर्वाह करना या प्राप्त करना बहुत महत्त्वपूर्ण माना गया है। पुरुषार्थ, जैसाकि सब प्रायः जानते हैं. चार हैं - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष / इनके ऊपर धर्मशास्त्रों में विशद् रूप से विचार किया गया है। लेकिन चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी में मिथिला के प्रसिद्ध कवि-चिन्तक दण्डनीति ने अपनी पुस्तक पुरुष परीक्षा में 4. निर्गुणः सगुणश्चेति शिवो ज्ञेयः सनातनः / निर्गुणः प्रकृतेरन्यः सगुणः सकलः स्मृतः / / 5. सच्चिदानन्द विभवात्सकलात् परमेश्वरात् आसीच्छक्तिः ततो नादा नादादविन्दु समुद्भवः / परशक्ति भयः साक्षात् त्रिधा सौभिद्ययते पुनः बिन्दर्नादो बीजमिति तस्य भेदा समीरिता।। 6. योगवासिष्ठ, पूर्व उद्धृत, पृ. 162 |