Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan

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Page 186
________________ मृत्यु की अवधारणा एक समाजशास्त्रीय अनुदृष्टि - - सुषमा खन्ना मानव अस्तित्व के संदर्भ में “मृत्यु" एक शाश्वत् घटना है। कठोपनिषद् में ऐसा उल्लेख है कि नचिकेता “मृत्यु” से उसका रहस्य पूछता है'। मृत्यु-संबंधी सत्य का ज्ञान हमें अपनी नियति तक पहुँचा सकता है। उसके ज्ञान के बिना परम पुरुषार्थ की सिद्धि असम्भव है। नचिकेता को यम नाना प्रकार के सांसारिक उपभोगों को प्रदान करने की चर्चा करता है पर मृत्यु-संबंधी प्रश्न न करने को कहता है। लेकिन नचिकेता अपनी जिज्ञासा पर दृढ़ रहता है। यम उसकी जिज्ञासा-दृढ़ता से प्रभावित हो मृत्यु-संबंधी महत्त्वपूर्ण ज्ञान देता है। मृत्युसंबंधी ये ही विचार हमें श्रीमद्भगवद्गीता तथा दूसरे वेदान्त ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। मृत्यु मानवीय अस्तित्व की समाप्ति नहीं है क्योंकि मनुष्य की आत्मा नित्य एवं शाश्वत् है। यह आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मृत्यु का आलिंगन करती है। समय के प्रभाव में मानव शरीर जीर्ण हो जाता है, मृत्यु इसी जीर्ण शरीर की समाप्ति है / परम्परागत भारतीय दर्शन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि “मृत्यु वस्तुतः स्थूल शरीर की ही समाप्ति है। मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता है। अतः मृत्यु आत्मा के जीर्ण देह रूपी वस्त्र का त्याग मात्र है। __ प्रस्तुत प्रपत्र में मृत्यु-संबंधी विचारों की वेदान्ती व्याख्या न कर समाजशास्त्रीय अध्ययन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में अस्तित्ववादी परिप्रेक्ष्य के आलोक में इस सन्दर्भ को व्याख्यायित करने का एक लघु प्रयास किया गया है। अस्तित्ववाद बीसवीं शताब्दी के संकट का संदर्श है। इस चिन्ताकुल युग के अनुरूप जीवन का सिद्धान्त अस्तित्ववाद में मिलता है। आज एक ओर विज्ञान की भौतिकवादी धारा ने मनुष्य को अस्तित्वहीन बना दिया है तो दूसरी ओर 1. कठोपनिषद्, 1/1/20 (सांकर भाष्य)। 2. कठोपनिषद् 1/2/18 (सांकर भाष्य)। 3. गीता, 2/221

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