Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan

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Page 175
________________ अमरत्व पर विषरूपी मृत्यु का तांडव 165 है। अन्तःकरण की स्वच्छता एवं प्रसन्नता-रूप प्रसाद की महिमा गीता में इस प्रकार वर्णित है - प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते। अन्तःकरण की प्रसन्नता होने पर इसके सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है। परमात्मविषयक बुद्धि के प्रसाद से उत्पन्न सुख को भी भगवान ने परिणाम में अमृततुल्य बतलाया है। __ जिस प्रकार भगवान शिव विषपान करने के बाद तथा नानारूप ग्रहण होने पर भी सदैव ताण्डव से अभिभूत रहे ठीक उसी प्रकार वर्तमान युग में भी अमरत्व पर विषरूपी मृत्यु का तांडव चला आ रहा है। यदि मृत्यु साकार सगुण रूप में ग्रहण की जाये या अमरत्व रूप में ग्रहण की जाये तो विषरूपी मृत्यु सदैव अपने आगोश में समाहित करने के लिए उद्धृत रहती है। विशेषतः इस लोक में ऐसे जीव हैं जिनका जीवन सत्संग और सद्ग्रन्थ के अध्ययन पर अवलम्बित रहता है। वह अमरत्व को प्राप्त करने के बाद अमरत्व पर विषरूपी मृत्यु के ताण्डव से सदैव दूर रहते हैं।

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