Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु का कर्मकाण्ड 121 पिण्ड-सम्मेलन के पश्चात् मृतक के नाम के साथ प्रेत शब्द का सम्बोधन नहीं किया जाता है। उत्तर क्रिया भारतीय संस्कृति में हिन्दू परम्परानुसार मृत्यु के कर्मकाण्ड की उत्तर क्रिया अत्यन्त वृहद्, व्यापक और विलक्षण है, जो किसी अन्य धर्म एवं सम्प्रदाय में नहीं दिखती। ये क्रियायें पीढ़ीदर-पीढ़ी चलती रहती हैं। इनमें प्रमुख उत्तर क्रियायें निम्नलिखित हैं - 1. वार्षिक श्राद्धकर्म - यह श्राद्ध प्रत्येक वर्ष मृत्यु की तिथि पर किया जाता है। प्रथम वार्षिक श्राद्ध के पूर्व घर में कोई मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। इससे एक वर्ष का पारिवारिक शोक प्रदर्शित होता है। प्रत्येक वर्ष मृतक का वार्षिक श्राद्ध (एकोदिष्ट श्राद्ध) तब तक किया जाता है जब तक कि उसका कोई पुत्र जीवित 2. गया श्राद्धकर्म - पिता की मृत्यु के पश्चात् कर्ता परिवार के सभी सदस्यों की अनुमति लेकर अपने पूर्वजों का गया (भारत में बिहार प्रदेश का एक जिला तथा नगर) में श्राद्धकर्म करता है। गया श्राद्धकर्म एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पन्द्रह दिन एवं तीस दिन की अवधि का होता है। श्राद्ध कर्ता उपरोक्त अवधि में से अपनी सुविधानुसार किसी एक अवधि का चयन करता है। मुख्य रूप से गया में चार स्थलों पर श्राद्धकर्म का विशेष माहात्म्य है। ये स्थल क्रमशः प्रेतशिला, फाल्गु नदी, विष्णुमंदिर और अक्षयवट हैं। गया में ही श्राद्ध कर्ता एक पिण्ड विष्णु के हाथों में इस आशय से समर्पित करता है कि यदि किसी कारणवश उसका स्वयं का श्राद्ध न हो पाए तो उस समय यह पिण्ड उसे भगवान श्री विष्णु की ओर से वापस मिल जाए। 3. तीर्थ श्राद्ध - हिन्दू समाज का कोई व्यक्ति जब किसी तीर्थ स्थल की यात्रा करता है तो अपनी कौलिक परम्परानुसार उन तीर्थों में अपने मृत पितरों का पिण्डदान श्राद्ध करता है। तीर्थ श्राद्ध में ब्रह्मकपाली (बद्रीनाथ), प्रयाग एवं काशी के श्राद्ध का विशेष माहात्म्य है। 4. त्रिपिण्डी श्राद्ध - यह श्राद्ध उन मृतकों के उद्धार के निमित्त किया जाता है जो जन्म लेने से पूर्व नष्ट हो गये अथवा जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो गये अथवा किसी कारणवश जिनका सामयिक श्राद्ध उचित विधि-विधान से न हो पाया हो। 5. पितृपक्ष श्राद्ध - सम्पूर्ण भारत में आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार सभी पितर इस अवधि में मृत्युलोक में आगमन करते हैं। पितृपक्ष की अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। पक्ष भर लोग अपने