Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु का कर्मकाण्ड 123 हैं। माघ मास में नये चावल की खिचड़ी लोगों को प्रिय होने के कारण अपने पितरों को समर्पित करने के उपरांत ही स्वयं ग्रहण करते हैं। (2) मेष संक्रान्ति - इसे चैत्र माह की संक्रांति के नाम से संबोधित किया जाता है। इस पावन पर्व पर पितरों के निमित्त मिट्टी के घड़े में जल भरकर उसके साथ सत्तू गुड़, बेल, ककड़ी एवं पंखा दान करने का विशेष माहात्म्य है। जौ, चना, आम का टिकोरा, बेल आदि वस्तुएँ अपने पितरों को अर्पित करने के पश्चात् ही स्वयं खाने की परम्परा है। गर्मी में लोगों को अपने लिये शीतल जल की आवश्यकता होती है इसीलिए वे अपने मृत पितरों के निमित्त भी घटदान करते हैं जिससे उन्हें शीतल जल प्राप्त हो सके। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ब्राह्मण को छोड़कर अन्य जातियाँ जो घटदान करती हैं, प्रायः एक महीने तक दान किये हुए घड़े में नित्य जल भरकर दान प्राप्तकर्ता के घर सुबह-शाम पहुँचाया करती हैं। यहाँ पर दानकर्ता का यह दृढ़ विश्वास होता है कि उसके द्वारा नित्य घड़े में भरकर दिया जाने वाला जल ब्राह्मण नहीं पीता अपितु उसके माध्यम से उनके (दानकर्ता के) पितर को प्राप्त होता है। (3) अक्षय तृतीया - वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया के नाम से संबोधित किया जाता है। इस परम पावन तिथि में व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को शर्बत पिलाते हैं एवं दक्षिणा, यज्ञोपवीत, पान-सुपारी, आदि देते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किये गये धार्मिक कार्यों का संचित पुण्य कभी नष्ट नहीं होता, वह युग-युगांतर तक अक्षय बना रहता है। शास्त्रीय मान्यतानुसार अक्षय तृतीया के दिन किये गये दान से अर्जित अक्षय पुण्य का फल, उन पितरों को प्राप्त होता है, जो किसी कारणवश स्वर्ग सुख पाने से वंचित रह गये होते हैं। श्राद्धकर्म के द्वारा ही व्यक्ति मातृ-ऋण एवं पितृ-ऋण से मुक्त होता है। श्राद्धकर्म के दौरान कर्ता बारह दिनों तक बह्मचर्य का पालन करता है। उसका भोजन अत्यन्त सात्विक एवं नमक रहित होता है। कर्ता को कोई दूसरा व्यक्ति शरीर से स्पर्श इसलिये नहीं करता कि वह अपवित्र है, अपितु इसलिये कि वह अपने मृत माता या पिता को मोक्ष दिलाने का मार्ग प्रशस्त करने के परम पावन कृत्य में लगा होता है। इसलिये वह किसी दूसरे कार्य में भाग नहीं लेता है। परिवार के अन्य सदस्य भी इस कार्य में कर्ता की मदद करते हैं। दस दिनों तक मृतक के परिवार के सदस्य गरुड़ पुराण सुनते हैं जिसमें मृत्यु के पश्चात् आत्मा की यात्रा का विस्तार से वर्णन किया गया है। . लौकिक जीवन में मृतक का संबंध अपने परिवार में ही कई अन्य सदस्यों से अच्छा नहीं होता परन्तु मृत्यु के पश्चात् जो नूतन संबंध बनता है उसमें सभी सदस्य मृतक को श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। मरणोपरांत उसे देवतुल्य मानते हैं, क्योंकि उनका संबंध अब