Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु - सच्ची या झूठी? 141 कि हमारी पृथ्वी माता भी इस अपार, असीम और अनंत अंतरिक्ष में कब, कहाँ, कैसे पहुँच जाया करती है। यह अतिविश्रुत, विख्यात, विश्वकृत, निर्जन, सुनसान, श्मशानालय में सर्षप सी छोटी पृथ्वी पर ही जीवन का झमेला है। जन्म, प्राणधारण और मरण का झगड़ा केवल और केवल इस क्षुद्र ग्रह पर ही है। इसका भी आगमन अति नवीन है - केवल दो अरब वर्ष पहले। मृत्यु के समय तो हर कोई जान जाता है कि वह कुछ नहीं है, पर जीवनकाल में ही जो जान-समझ सकता है इस सत्य को, वह प्राणी है। भगवान बुद्ध अपने धन्य शिष्यों को रोज़ सिखाते थे कि श्मशान में जाया-बैठा करो ताकि तुम पूर्णता को उपलब्ध हो। पर, हम हैं जो इतने लम्बे-चौड़े श्मशान में यह भी नहीं कर पाते। लगता है मरना ही प्रधान है। अंधकार ही प्रधान है। प्रकाश तो पैदा किया हुआ अल्पकालिक ज्योति जुगनू की पूँछ में से निकलता, जलता-बुझता आलोक है। जन्मना, जीना और मरना आखिर क्यों? प्रकृति ने ऐसा निरर्थक विधान बनाया क्यों? क्या एक ही जीव जन्मता, जीता और मरता रहता है? औरों की बात तो अलग, प्रकृति का सबसे बड़ा, प्रबोधक, प्रमुक्त और प्रमुख प्राणी मनुष्य के जीवन का भी उद्देश्य तो नहीं जान पाते हम। कौन है जो जीते रहते मर जाता है। और फिर जन्म लिया करता है? वह शरीर ही है या और कुछ? मरता शरीर ही है या और कोई? जन्म लेने वाला क्यों कब और कैसे जन्मता है? क्या मरने के बाद फूंक दिये जाने, जल में प्रवाहित करने, कब्र में दफनाने या मृत शरीर को संजोये रखने से कुछ मिलता है? अनेकानेक देशों के रहने वाले और अनेक युगों से लोगों का मानना-कहना है कि शरीर तो कुछ नहीं, असली तो आत्मा है जिसका सम्बन्ध शरीर से सदा ही बना रहता है। वह अति विशिष्ट तत्त्व है, व्यष्टि जीवन है, देही है, स्वतंत्र व्यक्ति सत्ता है और जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद भी रहने वाला आत्मतत्त्व है। वह शरीर के परे है। हाँ शरीररूपी आवरण का वस्त्र धारण किये हुए है। उसे लगता है कि वस्त्र जीर्ण या अनुपयुक्त हो जाने पर, मानसिक भूमिका समाप्त करके, वह उसे उतार फेंकता है। इसीलिए तो ऐसे लोग पूरा-पूरा विश्वास करते हैं कि आत्मा जन्म और मरण रहित होता है। यों, अतिमनोज्ञ, मनोयोगी, मनोविश्लेषक, मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक “फ्रॉयड” का अतिमान्य, प्रयोगसिद्ध और प्रमाणपुष्ट प्रतिज्ञ है कि जीव-जन्तु के भीतर आत्मा, परमात्मा, ईश्वर, परमेश्वर, आदि नहीं केवल कामप्रवृत्ति है। उसी से जन्मना, जीना और मरना भी होता रहता है। इसी के कारण विश्व की सीमा अंतहीन है। ___आज के विज्ञान और विशेषकर प्राणी-विज्ञान ने जन्म-मरण की समस्या पर बड़ा ही विशद, विश्वस्त, विशिष्ट, विशुद्ध एवं विश्वसित तथा विधिबोधित ढंग से सोचा-विचारा और सिद्ध कर दिया है कि जन्म-जीवन-मरण क्या है और जन्म के पहले तथा मरण के बाद होता क्या है? ह्यूम जैसे शून्यवादी को जानने-मानने वाले तत्त्ववेत्ता भी अब अमरत्व को सही