Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
View full book text
________________ मृत्यु की अवधारणा - प्राचीन शास्त्र और आधुनिक ज्ञान 129 __इन प्रश्नों नें “आत्मा", "सोल", "रूह" को जन्म दिया। बिना आत्मा को समझे मृत्यु को समझना कठिन है। यह "आत्मा" आदमी को व्यक्तित्व तथा मानवता प्रदान करती है। यह आत्मा ही “स्व” है, मन है, प्राण है। और आगे यह भी माना गया कि आत्मा परमात्मा का अंश है और मृत्यु के बाद भी जीवित रहती है (जैसा गीता में कहा गया है)। विश्व भर में “आत्मा” के स्वरूप, उसका शरीर से संबंध, उसकी अमरता और उद्भव पर विचार किया गया है, सभी देशों में अपने-अपने ढंग से। क्या सभी जीवित प्राणियों में आत्मा होती है? - यह भी एक महत्त्वपूर्ण विषय था क्योंकि तब यदि कहा जाए कि “आत्मा” केवल मानव में होती है तो आत्माविहीन प्राणियों की हिंसा जायज हो जायेगी। ___ प्राचीन मिस्र में “द्विआत्मा” का सिद्धांत था - “का” (श्वास, प्राणवायु) मरती नहीं और मृत शरीर के पास मंडराती रहती है और “बा” जो अशरीरी है मरण के बाद पितरों के लोक में चली जाती है। चीन की मान्यता थी कि एक “हीन" आत्मा होती है जो बड़ी संवेदनशील होती है तथा मृत्यु के साथ विलीन हो जाती है, दूसरी तर्कसंगत आत्मा “हून” जो मरण के बाद भी जीवित रहती है और पितर बनती है, अतः पितर पूजन की परंपरा है। ___ हिब्रू कहते हैं कि आत्मा शरीर का अभिन्न अंग है और शरीर के साथ मर जाता है। आगे इस विचारधारा में परिवर्तन हुआ और ईथीरियल सोल और कॉरपोरल सोल की बात कही जाने लगी। - यूनान के दार्शनिक मानते थे कि शरीर से आत्मा भिन्न है। ईसाई धर्मगुरुओं ने भी इसी बात का समर्थन किया। भोगवादियों (एपीक्यूरियन्स) ने कहा कि आत्मा भी शरीर की भाँति परमाणुओं से बनती है और शरीर के साथ ही बिखर जाती है। भारत में चार्वाक ने कहा कि देह जल जाने के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है, पुनर्जन्म नहीं होता। __यूनान के अफलातून वर्ग के दार्शनिक कहते हैं - आत्मा अशरीरी है, देवताओं जैसी है फिर भी भौतिक परिवर्तनों और अस्तित्व में शामिल होती है, जबकि अरस्तु वर्ग के विचारक कहते हैं - आत्मा का रूप अस्पष्ट है और इसे शरीर से अलग नहीं किया जा सकता। ईसाई सम्प्रदाय के संत अगस्तीन ने कहा कि आत्मा रथी है और शरीर वाहन / शरीर भौतिक है और आत्मा दैविक पर वे मानते हैं कि शरीर से अलग आत्मा का अस्तित्व नहीं है। . मध्ययुगीन यूरोप के विद्वान् थामस एक्विना ने यूनानी दर्शन का समर्थन करते हुए कहा कि आत्मा ही शरीर की नियंत्रक है पर अपने आप में स्वतंत्र है। __ रेनेसां युग के पुरोधा - रेने डे कार्टेस ने कहा कि मनुष्य आत्मा और शरीर का संयोग है। दोनों अलग हैं पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उनके लिये मन ही आत्मा है। प्रसिद्ध दार्शनिक स्पिनोजा मानते हैं कि शरीर और आत्मा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जबकि