Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 120 . मृत्यु की दस्तक उपयोग की वस्तुएँ यथा बर्तन, वस्त्र, गृह, वृक्ष (फलदार), भूमि, वर्ष भोजन, इत्यादि वस्तुएँ दान में दी जाती हैं। 4. द्वादशाह श्राद्धकर्म - मृत्यु के पश्चात् बारहवें दिन का कर्मकांड द्वादशाह श्राद्धकर्म के नाम से संबोधित किया जाता है। यह कर्मकांड दो भागों में सम्पादित होता है - (अ) मासिक (ब) सपिण्डीकरण। (अ) मासिक- सर्वप्रथम इस दिन षोड़स श्राद्धांतर्गत चौदह मासिक श्राद्धकर्म किये जाते हैं। वर्ष के भीतर अधिमास होने पर चौदह के स्थान पर पंद्रह.मासिक श्राद्धकर्म करने पड़ते हैं। प्राचीन काल में मृत्यु की तिथि पर ये श्राद्ध वर्षपर्यन्त प्रत्येक महीने किये जाते थे। वर्ष में जहाँ बारह महीने होते हैं वहीं मासिक श्राद्ध चौदह किये जाते हैं। ऐसी शास्त्रीय मान्यता है कि मृत्युलोक एवं बैकुण्ठ के बीच में छ:-छ: महीने पर दो पड़ाव आते हैं इसलिये मासिक श्राद्ध में षष्टम एवं सप्तम मासिक को उनषानमासिक एवं पानमासिक और तेरहवें एवं चौदहवें मासिक को अवार्षिक एवं वार्षिक कहते हैं। (ब) सपिण्डीकरण श्राद्धकर्म - ऐसी मान्यता है कि स्थूल शरीर का त्याग करने के पश्चात् जीवात्मा प्रेत योनि धारण करती है तथा इस योनि से मुक्ति पाये बिना वह पुनः नया शरीर धारण नहीं कर सकती। सपिण्डीकरण श्राद्ध के द्वारा जीवात्मा को इस प्रेतत्त्व से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इस श्राद्ध में मृतक के पूर्व की तीन पीढ़ियों को सम्मिलित किया जाता है। इन तीन पीढ़ियों से ऊपर के पितरों को देवतुल्य माना जाता है, उनकी विश्वदेव के रूप में पूजा की जाती है। सर्वप्रथम मृतक तथा मृतक से तीन पीढ़ी पूर्व के पितरों हेतु पिण्ड बनाये जाते हैं। मृतक के पिण्ड को स्वर्ण, रजत अथवा कुश की शलाका से तीन खण्डों में विभाजित कर एक-एक खण्ड को क्रमशः शेष तीनों पिण्डों के साथ मिलाते हैं तत्पश्चात् इन सभी पिण्डों को एक साथ सम्मिलित कर देते हैं। इस क्रिया को "पिण्ड सम्मेलन" या "पितर मिलन" कहते हैं। पिण्ड सम्मेलन निम्नलिखित क्रमानुसार होता है - 1. मृतक पुरुष का पिता, पितामह एवं प्रपितामह के साथ। 2. मृतक पुरुष के पिता के जीवित रहने पर पितामह, प्रपितामह एवं वृद्ध-प्रपितामह के साथ। 3. सौभाग्यवती स्त्री का पति के कुल की स्त्री के साथ तीन पीढ़ियों तक। 4. विधवा स्त्री का पति एवं पति के पूर्व पुरुषों की दो पीढ़ियों के साथ।