Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु का कर्मकाण्ड 111 साक्षात् यमराज से ही मृत्यु का रहस्य जानने के लिये - येयं प्रेते विचित्सा मनुष्येऽस्तीत्येके नायमस्तीत चैक / तद्विद्यामनुशिष्टस्तत्वयाहं वाराणामेष वस्तृतीयः / / गीता का द्वितीय अध्याय कठोपनिषद् पर आधारित है। दोनों में "नायं हन्ति न हन्यते" इत्यादि कई सिद्धांत-वाक्य समान रूप से उपलब्ध होते हैं, यह बात विद्वानों को विदित है। शास्त्रकारों ने जीवन और मृत्यु के इस चक्र को अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया है। ज्योतिष जहाँ काल के भोगों को मृत्यु मानता है वहीं वेदांत आत्मा की अमरता को स्वीकार करते हुए मृत्यु को देहांतर कहता है। ___ मानव शरीर पंचमहाभूत - पृथ्वी, जल, पावक, गगन, समीर; पंचकर्मेन्द्रिय - हाथ, पैर, गुदा, लिंग, जिह्वा; पंचज्ञानेन्द्रिय - श्रोत्र, चक्षु, रसना, त्वक, घ्राण; पञ्चप्राण - प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान; अंतःकरण चतुष्टय - मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और सत्व, रजस्, तम एवं आत्मा 27 तत्त्वों से घिरा है, जिसे स्थूल शरीर कहते हैं। स्थूल पंचमहाभूत और स्थूल पंचकर्मेन्द्रिय इन दस तत्त्वों के अतिरिक्त जो शेष 17 तत्त्व बचते हैं, उतने संघात व सूक्ष्म पंचभौतिक - यह सूक्ष्म शरीर है। मृत्यु का अर्थ है स्थूल पंचकर्मेन्द्रिय युक्त शरीर से प्राण का संयोग न होना, क्योंकि कर्म योग के लिये होता है, अतः मृत्यु से प्राणी का सर्वनाश नहीं हो जाता अपितु पूर्वोक्त दस तत्त्वों का कर्माशय समाप्त होने से निवृत्ति मात्र हो जाती है। __सत्ताईस तत्त्वों से आवेष्ठित इस प्राकृतिक शरीर की शुद्धि के लिए षोड्स संस्कारों का विधान है जो जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक सम्पन्न किये जाते हैं। संस्कृत साहित्य में संस्कार को विविध रूपों में परिभाषित किया जाता है। परन्तु ऋग्वेद से लेकर आधुनिक साहित्य तक में शरीर की शुद्धि को प्रमुखता दी गयी है। इनसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है। सनातन (हिन्दू) धर्मशास्त्र के अनुसार षोडस् मुख्य संस्कार हैं - गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण (नामधेय), निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, कर्णवेध, विद्यारम्भ, उपनयन (यज्ञोपवीत), वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह और अन्त्येष्टि / सोलह संस्कारों में से चौदह संस्कार माता-पिता एवं गुरु द्वारा सम्पन्न कराये जाते हैं। जीवन सातत्य को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले शेष दो संस्कार विवाह (पाणिग्रहण) स्वयं व्यक्ति द्वारा सम्पन्न होता है, तथा अंतिम संस्कार पुत्र के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। सनातन धर्म के अनुसार मृत्यु-संस्कार अंतिम संस्कार है। इसे सम्पन्न करने के लिये अनेक नियमों का विधान किया गया है। मृत्यु के प्रारम्भिक लक्षण स्पष्ट होने के साथ ही अंतिम संस्कार की तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं। इसमें सनातन (हिन्दू) धर्मशास्त्र एवं