Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ गीता में मृत्यु की संकल्पना - - बंशीधर त्रिपाठी गीता में मृत्यु की संकल्पना किस रूप में की गयी है इसे जानने के लिए इस ग्रंथ के विषय में दो बातों का जानना आवश्यक है। पहली, प्रस्थानत्रयी में गीता का क्या स्थान है; दूसरी, गीता तो एक है, पर इसके भाष्य अनेक, ऐसा क्यों? प्रस्थानत्रयी में गीता का स्थान परम्परागत रूप से प्रस्थानत्रयी में श्रौत, स्मार्त एवं दर्शन प्रस्थान आते हैं। श्रौत प्रस्थान के अन्तर्गत एकादश उपनिषदों की गणना की जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता स्मार्त प्रस्थान के रूप में प्रतिष्ठित है। दर्शन प्रस्थान के अन्तर्गत बादरायण व्यासकृत ब्रह्मसूत्र आता है। इन तीनों प्रस्थानों के विवेच्य विषय ब्रह्म, जीव एवं प्रकृति हैं। क्या ये तीनों प्रस्थान समान रूप से प्रामाणिक माने जाते हैं अथवा इनमें कोई सोपानात्मकता है, विद्वानों एवं मनीषियों को यह प्रश्न उद्वेलित करता रहा है। मेरी दृष्टि में इन प्रस्थानों में सोपानात्मकता है। बादरायण व्यास ने अपनी तर्क-शक्ति, बुद्धि-शक्ति के बल पर ब्रह्मसूत्र की रचना की। आस्तिक दर्शनों में इनका स्थान सर्वोच्च माना जाता है। इसे उत्तर-मीमांसा भी कहा जाता है। उपनिषदों की रचना ऋषियों के माध्यम से हुई। वे औपनिषदिक मंत्रों के द्रष्टा माने जाते हैं (ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः)। ऋषियों को मंत्रों का वक्ता भी माना जा सकता है (ऋषयो मन्त्रवक्तारः)। ऋषिगण मंत्रों के द्रष्टा हैं, वक्ता हैं, पर कर्ता नहीं। मंत्रों का कर्ता ईश्वर है। इसीलिए वेद को अपौरुषेय कहा जाता है। वेद के चार भाग हैं - संहिता (मन्त्र), ब्राह्मण, अरण्यक एवं उपनिषद् / वेद का अन्तिम भाग होने के कारण उपनिषद् को वेदान्त भी कहा जाता है। ऊपर जो कुछ कहा गया है उससे स्पष्ट है कि वेद न तो पूर्णतया पौरुषेय हैं और न ही पूर्णतः अपौरुषेय / वेद अंशतः पौरुषेय इस अर्थ में हैं कि ऋषिगण मन्त्रों के द्रष्टा व वक्ता हैं। वेद अंशतः अपौरुषेय इस अर्थ में हैं कि उनकी रचना ईश्वरीय है। अतः मेरी दृष्टि में वेद /