Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 94 . . मृत्यु की दस्तक ग्रहण नहीं करता है। क्योंकि मृत्यु के समय सारी बोधगम्यता समाप्त हो जाती है। जो भी अनुभव या अनुभूति होती है वह जीवन में ही होती है। (ख) मृत्यु के सम्बन्ध में कोई अनुमान भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि प्रमाण-शास्त्र ___ का कहना है कि अनुमान उसी का होता है जिसका कभी-न-कभी प्रत्यक्षीकरण हुआ. करता है। चूंकि मृत्यु का प्रत्यक्षीकरण नहीं होता है इसलिए इसका अनुमान भी सम्भव नहीं है। (ग) पाश्चात्य अस्तित्ववादी दार्शनिक सात्र ने कहा है कि आदमी की कोई अवधारणा नहीं बनती है क्योंकि मनुष्य सदा होने की स्थिति में रहता है। अवधारणा तो उसकी बनती है जो पूरा हो चुका होता है। यह समर्थन दर्शन जगत् में प्रायः स्वीकार कर लिया गया है। हमें अपने सम्बन्धों में विविध प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं। हमें अनुभूतियाँ भी होती हैं, फिर भी हम अपनी अवधारणा मानने को तैयार नहीं हैं। फिर मृत्यु की अवधारणा हम कैसे मान सकते हैं जिसके विषय में हमें कोई अनुभव प्राप्त नहीं होता (घ) सबसे विचारणीय बात तो यह है कि मृत्यु होती किसकी है? क्योंकि शरीर जड़ होता है और आत्मा अमर होती है। अतः मुझे ऐसा नहीं लगता है कि मृत्यु की कोई अवधारणा बनती भी है। मृत्यु के लिए प्रयुक्त प्रमुख शब्द - (क) प्राणान्त - मृत्यु के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध शब्द है प्राणान्त / मृत्यु के लिए कभी भी “जीवान्त” या “आत्मान्त” प्रयोग नहीं होता। क्योंकि जीव और आत्मा को अविनाशी समझा जाता है। मृत्यु से तात्पर्य होता है प्राणान्त। हिंसा बताते हुए जैन परम्परा में कहा गया है “प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरो पणं हिंसा" / ' अर्थात् प्रमादवश जो प्राणघात होता है, वही हिंसा है। मृत्यु भी हिंसा है यदि घात करने से वह होती है। जिस शक्ति से हम जीव को किसी-न-किसी रूप में जीवित देखते हैं वह शक्ति प्राण है, जिसके अभाव में कोई भी शरीर गतिहीन हो जाता है इसी वजह से प्राण के दस भेद किए गए हैं - 1. स्पर्शनेन्द्रि बल प्राण ___ 2. रसनेन्द्रिय बल प्राण 3. घ्राणेन्द्रिय बल प्राण 4. चक्षुरिन्द्रिय बल प्राण 5. श्रोत्रेन्द्रिय बल प्राण 6. कायबल प्राण 1. तत्वार्थ सूत्र उमास्वाति, अध्याय-7, सूत्र 8 /