Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ जैन दर्शन में मृत्यु विज्ञान - संथारा के परिप्रेक्ष्य में धीरेण वि मरिदव्वं णिद्धीरेण वि अवस्स मरिदव् / जदि दोहिं वि मरिदव्वं वरं हि धीरक्षणेण मरिदव्वं / / (02/65) अर्थात् जो धैर्यशाली है वह भी मरेगा और जो अधैर्यशाली है वह भी अवश्य मरेगा और यदि दोनों ही अवस्थाओं में मरना निश्चित् ही है तो क्यों न धैर्यपूर्वक मरा जाये? इसी प्रकार वे आगे कहते हैं - सीलेणवि मरिदव्वं णिस्सीलेणवि अदस्स मरिदव्वं / जह दोहिं वि मरिदव् वरं हु सीलक्षणेण मरिदलं / / (2/66) अर्थात् शीलवाला भी मरेगा, निःशील वाला भी अवश्य मरेगा। जब दोनों ही स्थितियों में मरना ही है तब क्यों न शीलपूर्वक मरा जाये। सल्लेखना का अर्थ “सल्लेखना" शब्द “सत्” और “लेखना” इन दोनों के संयोग से बना है। सत् का अर्थ है सम्यक और लेखना का अर्थ है अपने बुरे भावों या कषायों को कृश करना। . सल्लेखना का काल आचार्य समन्तभद्र ने लिखा है कि प्रतिकार रहित असाध्य दशा को प्राप्त हुए उपसर्ग, दुर्भिक्ष, जरा व रुग्ण स्थिति में या अन्य किसी कारण के उपस्थित होने पर साधक सल्लेखना करता उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतीकोर। धर्माय तनुविमोचनामाहु : सल्लेखनामार्या / / __- समीचीन धर्मशास्त्र, 6-1, पृ. 160 मूलाराधना में सल्लेखना के अधिकारी का वर्णन करते हुए कुछ मुख्य कारण बताये हैं - (मूलाराधना 2, पृ. 71.74) __ 1. दुश्चिकित्स्याव्याधि- संयम को परित्याग किये बिना जिस व्याधि का उपचार करना संभव न हो, ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर। 2. वृद्धावस्था - जो श्रमण जीवन की साधना करने में बाधक हो। 3. मानव, देव और ऋषि-सम्बन्धी कठिन उपसर्ग उपस्थित होने पर। 4. चारित्र विनाश के लिये अनुकूल उपसर्ग उपस्थित किये जाते हों।