Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ सिक्ख धर्म में मृत्यु का स्वरुप ना जीउ मरै न मारीआ जाई, करि देखे सबदि रजाई हो। - मारु सोलहे 6 यदि जीव अमर है तो मरता कौन है? शरीर, जो कि पाँच भौतिक तत्त्वों का बना हुआ है वह तो जड़ है। चेतना उसमें जीव अथवा आत्मतत्त्व के कारण ही है तथा मृत्यु का सम्बन्ध तो चेतन तत्त्व से ही है। इस विषय पर स्पष्टीकरण करते हुए सिख धर्म में कहा गया है कि “माया” के कारण तथा कर्मोपभोग के लिए "जीव” शरीर धारण करता है तथा कर्मोपभोग हो जाने पर एवं माया का बंधन हट जाने पर शरीर का त्याग कर देता है। जीव द्वारा शरीर धारण करना जन्म है तथा शरीर का त्याग ही मृत्यु है। “माया” ग्रस्त होने पर तथा कर्मोपभोग के लिए जीव बार-बार जन्म ग्रहण करता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। वर्तमान जन्म से पूर्व जीव को कितने जन्मों से जुड़ना पड़ा है यह कोई नहीं बता सकता - जुड़ि जुड़ि बिछुड़ि जुड़े जीवि जीवि मुए मुए जीवे। केतिआ के बाप केतिया के बेटे केते गुरु चेले हुए, आगै पाछै गणत न आवै किआ जाती किया हुणि हुए। -- सारंग श्लोक 4 कर्मों के अनुसार जीव अनेक योनियों में भटकते रहते हैं। कभी उन्हें सूखे वृक्ष की योनि धारण करनी पड़ती है, कभी पक्षियों की योनि में जाना पड़ता है। सभी योनियों में जन्म एवं मृत्यु का चक्र चलता रहता है। परन्तु मनुष्य योनि प्राप्त होने पर जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाया जा सकता है। इसीलिए सिख गुरुओं ने इस शरीर को हरि का मन्दिर कहा है। इस शरीर में ही परम ज्योति स्थापित है - काइआ महलु मंदरु घरू हरि का, तिसुमहि राखि ज्योति अपार - महारपदे 5/4 यह शरीर परमात्मा का महल या मन्दिर है। सत्यस्वरूप परमात्मा ने शरीर रूपी गढ़ और फिर उस गढ़ के भीतर भवन की रचना की है और स्वयं ही उस भवन का स्वामी है। उस भवन में अपने बैठने के लिए परमात्मा ने दशम द्वार रूपी सच्चे तख्त की रचना की है। भगवद्गीता में शरीर को नौ द्वारों वाला बताया गया है (5/13) / गुरु नानकदेव ने एक दशम द्वार की भी परिकल्पना की है। उनके अनुसार काया ही वास्तविक नगर है और गगनंदपुरी (दशम द्वार) में सच्चे हरि का निवास है। ___5. केते रुख विरख हम चीने, केते पसू उपाए। केते नाग कुली महि आए, केते पंख उड़ाए।। मारु सोलहे 18/12 (नानकवाणी, गउड़ी चेतह, सबद 17) /