Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
View full book text
________________ मृत्यु की अवधारणा - इस्लाम की दृष्टि में "मृत्यु' (मौत) शब्द का वर्णन कुरआन में इस्लाम के निर्देश जीवन एवं मृत्यु दोनों से सम्बन्धित हैं। इस्लाम ने जीवन को दो भागों में विभाजित किया है और दोनों के मध्य मृत्यु की अवस्था है। दूसरा जीवन मृत्योपरान्त प्रारम्भ होता है। अतः दोनों जीवन की अवस्था एवं उससे सम्बन्धित निर्देश वर्णन के साथसाथ मौत का विस्तृत वर्णन भी आवश्यक है। इसीलिए पवित्र कुरआन ने इस पर व्यापक प्रकाश डाला है। इस तथ्य पर कुरआन के विशेष ध्यान का अनुमान इस बात से होता है कि 'मौत' शब्द का वर्णन पवित्र कुरआन में विभिन्न प्रसंगों में लगभग पचास बार हुआ है, तथा लगभग एक सौ पैंतीस (135) भावों में इस शब्द का अर्थ व्यक्त किया गया है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कुरआन इस तथ्य को मनुष्य के मस्तिष्क में सदैव जाग्रत् रखना चाहता है जिससे कि उसका परलोक जीवन शान्तिमय एवं मंगलमय रहे। विषय की कठिनता मनुष्य के ज्ञानार्जन स्रोत सीमित हैं। अभी तक बहुत से ज्ञान-विज्ञान-सम्बन्धी तथ्य उसकी बुद्धि से बाहर हैं। परन्तु यह उसकी त्रुटि नहीं है अपितु उसके महत्त्व की व्याख्या एवं अन्वेषण के उद्देश्य का महत्त्व उजागर करने का एक अच्छा उदाहरण है। मौत भी एक ऐसी ही सच्चाई है जिसकी पूर्ण वास्तविकता और उसका रहस्योद्घाटन मनुष्य क्षमता से अभी परे है। इसका कारण यह है कि मृत्यु की वास्तविकता जानने के लिए जीवन का रहस्य जानना आवश्यक है। यह रहस्य, आत्मा का रहस्य समझे बिना समझ पाना असम्भव है। - आत्मा के सम्बन्ध में नवी स. को मात्र इतना कहने का निर्देश है कि आत्मा ईश्वर का एक अम्र (निर्देश) है। प्रसिद्ध विद्वान् इमाम गज़ाली ने इससे यह अर्थ लिया है कि आत्मा की वास्तविकता प्राप्त कर लेने के बाद भी किसी धार्मिक विद्वान् को यह अधिकार नहीं है कि वह उसका रहस्योद्घाटन करे। हां, मृत्योपरान्त आत्मा की अवस्था पर विचार व्यक्त कर सकता है। मृत्यु-सम्बन्धी विभिन्न कथन मृत्यु की वास्तविकता को समझने की कठिनाई का अनुमान विभिन्न लोगों के कथनों से होता है। कल्पना एवं अनुमान का सहारा लेकर विभिन्न विद्वानों ने इस समस्या का समाधान करने का प्रयत्न किया है। परन्तु वास्तविकता प्राप्त करने में सफल नहीं हो सके हैं। कुछ कल्पनाएं . एवं अनुमान निम्नलिखित हैं - 1. मृत्यु की वास्तविकता अप्रत्यक्ष है अर्थात् मृत्योपरान्त नव जीवन, कोई परीक्षा तथा प्रतिफल नहीं, जिस प्रकार जानवर एवं वनस्पतियां नष्ट हो जाती हैं उसी प्रकार मनुष्य का. भी अन्त हो जाता है।