Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु के नाना प्रकार है कि कठोपनिषद के उक्त वचनों में मृत्यु को यम का पर्यायवाची शब्द माना गया है। योगशास्त्र की कालवंचन की प्रक्रिया में काल शब्द मृत्यु का ही सूचक है। स्पष्ट है कि काल, मृत्यु और यम शब्द पर्यायवाची हैं और ऋजुविमर्शिनीकार के द्वारा उद्धृत वचन भी उनके मत की पुष्टि करता है, भास्करराय के मत की नहीं। __ प्रस्तुत उपनिषद् में यमराज नचिकेता को तीन वर माँगने को कहते हैं और नचिकेता तीसरे वर के रूप में मृत्यु के रहस्य को जानने की जिज्ञासा करते हैं - “येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्येऽस्तीत्येके नायमस्तीति चैके” (1.1.20) / अर्थात् व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के उपरान्त यह विचिकित्सा (जानने की इच्छा) होती है कि उसकी क्या स्थिति बनती है? कुछ आचार्यों का कहना है कि मृत्यु के बाद भी उसका अस्तित्व रहता है, जबकि अन्य आचार्यों के मत से बाद में उसकी कोई स्थिति नहीं रह जाती। सही बात क्या है? यही नचिकेता यमराज से जानना चाहते हैं। प्रस्तुत गोष्ठी में हम सब भी तो इसी विषय पर विचार करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। इसके उत्तर में यम नचिकेता को अनेक प्रकार के प्रलोभन देते हैं और कहते हैं - “नचिकेता मरणं मानुप्राक्षीः (1.1.25) / हे नचिकेता! तुम मृत्यु के रहस्य को जानने की जिद को छोड़ दो। नचिकेता - “न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः” (1.1.27) कहते हुए यम के धन-धान्य, ऐश्वर्यविषयक प्रस्ताव को उसी प्रकार से अस्वीकार कर देते हैं, जैसे ऋषि याज्ञवल्क्य के प्रस्ताव को - “येनाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्याम्” (बृहदारण्यक 2.4.3) यह कहती हुई उनकी पत्नी मैत्रेयी अस्वीकार कर देती है। नचिकेता यम को कहते हैं कि मनुष्य धन-ऐश्वर्य से कभी तृप्त नहीं हो सकता और मैत्रेयी भी ऋषि याज्ञवल्क्य की धन-संपत्ति को लेने से मना कर देती है, उसे तो अमृतत्व की जिज्ञासा है। मृत्यु के रहस्य को जानने की नचिकेता की उत्कट अभिलाषा को देखकर यमराज इस पूरी उपनिषद् में इसके रहस्य को समझाते हैं। श्रेय और प्रेय, विद्या और अविद्या के स्वरूप को बताते हुए वे कहते हैं कि धन्य-धान्य, ऐश्वर्य के मोह में पड़कर व्यक्ति भविष्य में आने वाली विपदाओं से बेखबर रहता है, वह परलोक की भी चिन्ता नहीं करता। इस तरह की विपदाओं से मानव का उद्धार करने वाली शास्त्रों के प्रति भी उसकी रुचि जग नहीं पाती। इन सब दोषों से ऊपर उठ जाने के कारण नचिकेता की प्रशंसा करते हुए यमराज कहते हैं - “अयं लोको नास्ति पर इति मानी पुनः पुनर्वशमापद्यते मे” (1.2.6) / अर्थात् इस लोक के अतिरिक्त दूसरा कोई लोक नहीं है, इस तरह के अभिमान को पालने वाला व्यक्ति बारबार मेरे (यमराज के) वश में पड़ जाता है। यहाँ स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जो व्यक्ति परलोक को नहीं मानता, उसे बार-बार यमराज के वश में रहना पड़ता है, अर्थात वह जन्म.. मृत्यु के निरन्तर गतिशील चक्र में चक्कर काटता रहता है। आगे इस पूरे उपनिषद् में मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की पद्धति वर्णित है।