Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता में मृत्यु की अवधारणा भगवान कृष्ण ने स्वयं को यम, काल2 और मृत्यु कहा है। इस प्रकार वे ही मृत्यु हैं। उन्होंने आगे भी संसार के विनाश के लिए प्रवृत्त अपने को कालरूप बताया है। मृत्युसंसार-सागर से उबारने वाले भी स्वयं परमेश्वर हैं। अतः मृत्यु से बस बचने के लिए एकनिष्ठ होकर उनका ध्यान करना चाहिए। इस प्रकार, संक्षेपतः उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता के आधार पर मृत्यु-सम्बन्धी अवधारणा को प्रस्तुत करने का यत्किंचित् प्रयास किया गया। वस्तुतः शरीर को चेतन तत्त्व (देही, शरीरी, आत्मा, पुरुष अथवा जिस किसी संज्ञा से बोधित होने वाले) से वियोग ही मृत्यु उपनिषदां मतं सम्यग्गीतामुखविनिःसृतम्। . मृत्योस्स्वरूपमाख्यातं मनःशान्तिसमृद्धये / / 6 / / 31. यमः संयमतामहम्। - वही, 10.29 .. 32. कालः कलयतामहम्। - वही, 10.30 33. अहमेवाक्षयः कालः। - वही, 10.34 34. कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान् समाहर्तुमिह प्रवृतः। - वही, 11.32