Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 74. मृत्यु की दस्तक तीन कर्मों को नित्य निष्काम भाव से करने वाला मनुष्य जन्म और मृत्यु से परे हो जाता है 12 पुनः कहा गया कि इन तीनों को भली-भाँति जानकर जो अनुष्ठाता विद्वान् नचिकेता अग्नि का चयन करता है, वह अपने समक्ष ही मृत्यु को काट डालता है।13 कठोपनिषद् में “मृत्यु को परमेश्वर (अनिर्वचनीय देव) के भोजन का उपसेचन (भोज्य वस्तु के साथ लगाकर खाने वाला व्यंजन, तरकारी, चटनी, आदि) कहा गया है। यहाँ परमेश्वर (महाकाल) को ही सभी मनुष्यों का आहार करने वाला कहा गया है। मृत्यु भी उसके अधीन है।14 बाह्य भोगों का सासक्तिपूर्वक सेवन, मृत्यु का कारण कहा गया है। जो अज्ञानी बाह्य भोगों में ही सर्वथा लीन रहते हैं वे मृत्यु के बन्धन में पड़ते हैं। जिसके भय से मृत्यु भी अपने कार्य को करने के लिए दौड़ती है। उस परमात्मा को जो यथार्थतः नहीं अनुभव वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त करता है अर्थात् बारबार जन्म-मरण को प्राप्त होता है।" प्राणापान से परे जीवन के परम कारण को कठोपनिषद् में इस प्रकार से बतलाया गया है - न प्राणेन नापानेन मयो जीवति कश्चन / इतरेण तु जीवन्ति यस्मिन्नेतावुपाश्रितौ।। हन्त त इदं प्रवक्ष्यामि गुह्यं ब्रह्म सनातनम् / यथा च मरणं प्राप्य आत्मा भवति गौतम। 18 अर्थात् कोई भी मरणधर्मा प्राणी, न ही प्राण से और न ही अपान से जीवित रहता है अपितु जिसके आश्रय से ये दोनों शरीर में रहते हैं, ऐसे किसी अन्य से ही, सनातन ब्रह्म से ही जीवित रहता है। मृत्यु के पश्चात् (मृत्यु को प्राप्त करके) वह आत्मा ही (शेष) रहता है। यहाँ जन्म और मृत्यु की परम कारणता की ओर संकेत किया गया है। वस्तुतः जन्म और मृत्यु की अवधारणा यहाँ इस प्रकार संकेतित है - 12. त्रिणाचिकेतस्त्रिमिरेत्य सन्धिं त्रिकर्मकृत्तरति जन्ममृत्यू। ब्रह्मजज्ञं देवमीड्यं विदित्वा निचाय्येमा शान्तिमत्यन्तमेति।। - वही, 1,1,17 13. त्रिणाचिकेतस्त्रयमेतद्विदित्वा य एवं विद्वाँश्चिनुते नाचिकेतम्। . स मृत्युपाशान् पुरतः प्रणोद्य शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके।। - वही, 1.1.18 यस्य बह्म च क्षत्रं च उभे भवत ओदनः। मृत्यूर्यस्योपसेचनं क इत्था वेद यत्र सः।। - वही, 1.2.25 15. पराचः कामाननुयन्ति बालास्ते मृत्योर्यन्ति विततस्य पाशम्। - वही, 2.1.2. 16. भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्यः / भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पंचमः / / - वही, 2.3.3. एवं तैत्तिरीय, 2.8. 17. यदेवेह तदमुत्र यदमुत्र तदन्विह। मृत्योः स मृत्युमाप्लोति य इह नानेव पश्यति। मनसौदमाप्तव्यं नेह नानास्ति किंचन। मृत्योः स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति।। - कठोपनिषद् 2.1. 10-11 18. कठोपनिषद्, 2.2 5-6 /