Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता में मृत्यु की अवधारणा 73 काल का कार्य ही प्राणियों को पकाना (अर्थात् मृत्यु को प्राप्त कराना) है। यहाँ एक बात विचारणीय है कि स्वाभाविक अवस्था प्राप्त मृत्यु के अतिरिक्त प्राणियों की अकारण मृत्यु भी होती है उसका स्पष्टीकरण तो उपर्युक्त आधार पर अथवा श्रीमद्भगवद्गीता के वचन “वासांसि जीर्णानि " के आधार पर नहीं दिया जा सकता। संसारवृक्षकान्नित्यं कालो धूनयते महान्। सह पक्वैः फलैस्तत्र निपतन्तीतराण्यपि।। जैसे किसी फलदार वृक्ष को कोई बल लगाकर हिलाये तो पके हुए फलों के साथ कुछ कच्चे फल भी गिर पड़ते हैं। वैसे ही यह महान् काल (समय) नित्य ही इस संसार रूपी वृक्ष को झकझोरता है, तो पके हुए (पूर्णायु) फलों (प्राणियों) के साथ कुछ अन्य कच्चे (अपूर्णायु) फल (प्राणी) भी टपक पड़ते हैं। ईशोपनिषद् में अविद्या के द्वारा मृत्यु को पार करने की बात कही गई है - अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययामृतमश्नुते / अर्थात् कर्मों के यथार्थ अनुष्ठान से मृत्यु को पार करके ज्ञान के यथार्थ अनुष्ठान से अमृत अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। उक्त कथन से प्रतीत होता है कि मृत्यु के इस पार संसार (विनाशिता) और उस पार मोक्ष (अविनाशिता) है। मृत्यु मध्यस्थ है। जैसे नदी के पार किसी स्थान पर जाने के लिए नाव, आदि साधन से उस नदी को पार करना अनिवार्य है, बिना नदी को लाँघे, पार के स्थान को नहीं पहुँच सकते। वैसे ही अविद्या रूप साधना से मृत्यु को लाँधकर विद्या रूप साधन से मोक्ष तक पहुँचते ___ मृत्युविषयक ज्ञान प्राप्त करने के लिए कठोपनिषद् का विशिष्ट महत्त्व है। इसका प्रारम्भ भी मृत्यु के उल्लेख से होता है। बालक नचिकेता के पिता ने उसे “मृत्यु” को दे दिया।" यहाँ मृत्यु का अर्थ “यम" नामक देवताविशेष से है। नचिकेता सोचता है कि मुझसे यम को क्या प्रयोजन? नचिकेता पिता की आज्ञा का पालन करता हुआ मृत्यु अर्थात् यम के घर जाता हैं और उनसे संवाद करता है। वह यम से मृत्यु के बारे में पूछताछ करता है और पूछता है कि मरने के पश्चात् जीव का क्या होता है? मृत्यु = यम। उसे पर्याप्त आनाकानी करने के पश्चात् बतलाता है। कठोपनिषद् के अनुसार, नचिकेता अग्नि को शास्त्रोक्त विधि से तीन बार अनुष्ठान करने वाला, ऋक, साम और यजुस् से सम्बन्ध जोड़कर, यज्ञ-दान-तप रूप - 9. अस्मिन्महामोहमये कटाहे सूर्येन्दुना रात्रिदिवेन्धनेन। ___मासर्तुदींपरिघट्टनेन भूतानि कालः पचतीति वार्ता / / - महाभारत 10. ईशोपनिषद्, 11. 11. तं होवाच मृत्यवे त्वा ददामीति। - कठोपनिषद् 1,1,4