Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ मृत्यु के नाना प्रकार 67 के प्रस्तुत श्र्लोक में अपान को जीव के नाम से संबोधित किया गया है। श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया में प्राण सकार के रूप में बाहर निकलता है और अपान (जीव) हकार के रूप में भीतर प्रविष्ट होता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है, किन्तु जीव (अपान) यदि मानवशरीर में पुनः प्रविष्ट नहीं होता, तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार यमराज के दो श्वानों की व्याख्या यहाँ प्राण और अपान अर्थात् श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया के रूप में की गई है - "प्राणापानौ समौ कृत्वा” (5.27) / गीता के इस वचन में इन्हीं की चर्चा है। उक्त प्रक्रिया दिन-रात और चन्द्र-सूर्य के रूप में भी व्याख्यायित है। यहाँ यमराज के दो श्वानों का वर्णन इस प्रकार मिलता है - “श्वानौ द्वौ श्यावशबलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ” (पृ. 171) / अर्थात् वैवस्वत (यमराज) के कुल में उत्पन्न दो श्वान श्याव और शबल (चितकबरा) वर्ण वाले हैं। इन श्वानों की तुलना रात और दिन से की गई है। रात्रि का वर्ण श्याव (काला) है और दिन का शबल। दिन का वर्ण प्रातःकाल, मध्याह्न में शुक्ल और सायंकाल कालिमा से घिरने लगता है, अतः इसको चितकबरे रंग का माना गया है। स्पष्ट है कि यम के श्वानों को यहाँ रात और दिन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। रात और दिन के माध्यम से काल सतत् जागरूक रहता है और एक दिन व्याधिग्रस्त यह जीव काल का ग्रास बन जाता है, मृत्यु की भेंट चढ़ जाता है। स्पष्ट है कि काल, मृत्यु, यम और व्याधि - ये सब एक ही तत्त्व के विविध नाम-रूप हैं। अब कालिदास के इस वचन को आप देखिए - मरणं प्रकृतिः शरीरिणां विकृतिर्जीवनमुच्यते बुधैः / क्षणमप्यवतिष्ठते श्वसन् यदि जन्तुर्ननु लाभवानसौ।। - रघुवंश, 8.87 कालिदास ने यहाँ मरण (मृत्यु) को प्रकृति माना है, अर्थात् एक-न-एक दिन उसका आना निश्चित (ध्रुव) है। जीवन के विषय में ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता, अतः मनुष्य को चाहिए कि जीवन के इन क्षणों का सही उपयोग कर लिया जाए, अर्थात् मरण पर विजय प्राप्त करने का उपाय कर लिया जाए। * योगी जन इसके लिए अधिक सावधान रहते हैं। कालवंचन शब्द की चर्चा अभी यहाँ हुई है। योग एवं आगम तन्त्रशास्त्र के ग्रन्थों में और पुराणों में भी कालवंचन के विषय में कुछ-न-कुछ कहा गया है। मृत्युकाल के समीप आने पर उस व्यक्ति के सामने प्रकट होने वाले लक्षणों की चर्चा कर ऐसे स्थलों पर बताया जाता है कि यदि किसी कार्य की सिद्धि में लगा योगी अपने वर्तमान शरीर को अभी छोड़ना नहीं चाहता, तो वह इसके लिए क्या उपाय करे। ये उपाय ही कालवंचन के रूप में प्रसिद्ध हैं। शास्त्रों में बताए मृत्यु के लक्षणों के माध्यम से योगी को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी मृत्यु कब आने वाली है। तब वह कार्यसिद्धि-पर्यन्त मृत्यु से अपने को बचाए रखता है।