Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ प्रस्तावना मृत्यु का द्योतक है। निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि जिन समाजों की संरचना जितनी ही जटिल होगी उनमें सामाजिक मृत्यु की संभावनायें भी उतनी ही अधिक होंगी। सुश्री सुषमा खन्ना ने भी अस्तित्ववादी परिप्रेक्ष्य में मृत्यु की अवधारणा पर प्रकाश डाला है। उनका कहना है - अस्तित्ववाद बीसवीं शताब्दी के संकट का संदर्श है। यह दर्शन न होकर एक प्रकार की दार्शनिक प्रवृत्ति है। प्रश्न उठता है - मनुष्य का अस्तित्व क्या है? इसका उत्तर खोजना आवश्यक है। अस्तित्ववादी डेकार्ट कहता है - “मैं सोचता हूँ, इसलिये मेरा अस्तित्व है।" मार्टिन हाइडेगर इस विचार के पोषक थे कि हमारा अस्तित्व मृत्योन्मुख सत् है। प्रमुख अस्तित्ववादी चिंतक सार्च के मृत्यु-सम्बन्धी विचार का विकास हाइडेगर के मृत्यु दर्शन के विरोध में हुआ। सात्र मृत्यु को एक आकस्मिक तथ्य मानते हैं। उनके अनुसार जन्म की तरह मृत्यु भी एक तथ्य है जो बाहर से मेरे निकट आता है। जिस पर मेरा बस नहीं है। मृत्यु सम्पूर्ण मानव सम्भावनाओं का निरर्थक विकास है, मानव अहम् की अर्थहीन अंत्येष्टि / यह अर्थहीन है. कि हम पैदा हुए थे और यह भी अर्थहीन है कि हम मरते हैं। श्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह "मेलान" नामक एक लोक-प्रचलित अवधारणा को प्रकाश में लाये हैं। इसमें व्यक्ति किसी तांत्रिक द्वारा अपने शत्रु के ऊपर अभिचार करवाता है, जिससे लक्षित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। मेलान में व्यक्ति मृत्यु का अनुभव करता है। श्री दीनानाथ झुनझुनवाला ने अपने लेख में जन्म, जीवन एवं मृत्यु की सातत्यता पर प्रकाश डाला है। जन्म के सात भेद हैं, उसके शारीरिक एवं पारिवारिक आधार पर। इसी प्रकार जन्म के बाद जो जीवन हमने पाया है उसी जीवन में जितने मनुष्य हैं उनमें भिन्नता मिलेगी। जीवन की समाप्ति की अवस्था का नाम मृत्यु है। जन्म और मरण के बीच की अवस्था का नाम जीवन है। जन्म, जीवन और मृत्यु एक चक्र है। जीवात्मा न कभी जन्म लेती है न कभी मरती है। यह अजन्मी, शाश्वत्, नित्य पुरातन है। श्री रामप्रवेश शास्त्री ने जीवन को मृत्यु की सहेली कहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि इन दोनों में कोई टकराव नहीं हैं। फिर भी मृत्यु की अवधारणा सारे संसार में एक-सी नहीं है। जीवन की लालसा सभी मनुष्यों में बनी है, किन्तु कुछ ऐसे भी संत और कवि हैं जिन्होंने जीवन और मृत्यु के बीच भिन्नता का सम्बन्ध माना है। कबीर, गांधी, विनोबा और कृष्णमूर्ति के विचार के साथ-साथ लेखक ने स्वरचित एक कविता से जीवन और मृत्यु की सातत्यता को स्पष्ट किया है। श्री रमेश नारायण ने भी महात्मा कबीर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए मृत्यु के आनन्दमयी उत्तम स्वरूप पर प्रकाश डाला है। भारतीय वाङ्मय में मृत्यु की चर्चा कबीर के दोहे के बिना अधूरी है, क्योंकि अनपढ़ कबीर ने जो संसार को पढ़ा है “वह पढ़ना कुछ और।