Book Title: Mahasati Sur Sundari Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala View full book textPage 7
________________ ( ४ ) समाजभक्त, देवगुरुधर्मभक्त, प्रतिज्ञा प्रतिपालक दृढ नियमधारक, परद्रव्बग्रहनमें पंगु, परनार निरक्षणमे अन्धे, परापवादबोलनेमें मुक्का, परनिंदाश्रबमे बेहेरे, दंड कहाजायतों वह उचे उचे सिखरवाले मंदिरोपरही पाया जातेथे न की कीसे मनुष्यपर कवी दंड हुवा हो, बन्ध कहा जाव तो मात्र ओरतो केशो परही सुना जातेथे नकी कींसे पौरजनको बन्ध हो कारण वहां राजा प्रज्यापाल है रैयत राजभक्त है और भी नगरी शोभा अधिक वृद्धि करनेवाली दानशालाओ, पाठशाला, अनाथाश्रम, हुन्नरोद्योग, पाणीकी पर्ब, मुसाफरखाने धर्मशाला आदि है. उस चम्पानगरी के बाहार अनेक जलाश्रम तलाव कुँवे वावी पुष्करणि नदी नाला करना उझरना निकरना जिनोके श्राश्रीत रहे हुवे शोकवृक्ष, नलीयर, खीजुर, दाडिम, द्रक्षा विजोरा वा पीपर निंबु सीताफल पुंगीफल नागपुन |ग आदि वृक्षोंसे वह जलाश्रय अच्छे शोभनिय थे उस चम्पानगरीकि इशानकोनमे अनेक प्रकार के वृक्ष लत्ता - श्यामलत्ता वसंतलत्ता चम्पकलत्ता - कमल पद्मकमल महापद्मकमल पुंडरिककमल सुगन्धीकमल चन्द्रविकाशीत सूर्यविकाशित शतपत्र सहस्रपत्र मालति आदि बापियों तलवों देदींपमान है जाइ जुइ चम्पो चपेली गुलाब हीनो मोंगरी मरवो मचकुन्द श्रादिसे बगेचे सुवासित हो रहा था जिस सुगन्धके भारे भ्रमरगण गुंजार शब्द कर रहे है फलफूल के प्रभाव से हंस मयूर कोकल तीतर शुक्र कोचपाक्षी आदि मधुर मधुर शब्दोंसे कीलोंल कर रहेथे आये हुवे पान्थीक लोगोके भ्रम दूर करनेमे यह बगीचा वडाही सहायक बन वेठा था. भोगी लोगोंके भोगविलासमे एकामानोनन्दन बनकि श्राशाको पूर्ण कर रहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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