Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 17
________________ (१४) कहा कि क्यों देवी तुमारा कर्त्तव्य नैवद्य छडापाखानेकाही है इस वास्तेही दुनियोंसे पूजाती है. वहा देवी वहा, तुमारी स्वार्थवृति । देवीने कहा कि सेठजी मे जो आपका नैवद्य आदिसे पूजातिहुं जीस्का फर्ज प्राप कों देदीया अर्थात् आपको सावचेत कर दीया जिस्के जरियेसे आप एक दील हो कर कर्मोको भोगवनेका निर्णय कर लिया है क्या मेने मेरा फर्ज नहीं बजाया है वह हां कीतनेक देवी देवता मुफतके माल खाते हैं वह सुख दुःखमें इतनाही काम नहीं देते है वह जरूर कृतघ्नी है में तो कृतज्ञ हु ईत्यादि सवाल उत्तर करके देवी अपने स्थानकी तर्फ गमन करती हुइ अब सुनिये सज्जनों सेठजीके कर्म कीस रीतीसे उदय होते है। शुभे आठ बजे कि जिक्रहै सेठजी के पुत्र दुकानपर बेठेथे ईतने में कोइ विदेशी वैपारी झवेरायत लेके आये थे परन्तु उस्के हासील चोराके आये थे. वह वैपारी सेठजीकि दुकानपर झवेरायत बतला रहे थे । इतनेमें तो खबर करते हुवे दाणी आ पहुचे. उसे देखतेही वैपारी लोक तो कसक मूलकि फाकी ले बाइस दोडा तेतीसे मना गमें ओर उनके बदलेमे सेठजी के लडके पकडे गये थे वात भी ठीक हे कि कर्मोदय होते है तब कह पुच्छके नही होते है बस वह दाणि सेठनीके पुत्रोंको पकडके कोतवलीमे ले गये उस वख्त कोतवालीमे दो तीन मुकरदमे हासलकि चोरीका ही चल रहा था. दाणीजनने सोचा कि अगर ईसपर सक्ताइ न कि जाय तो सब लोक हासल चोराया करेगा जिस्का फल मेरी गलती कशुर पाया जायगा एसा सोच सबपर हुकम लगा दीया कि जितेन लोगोने हासील चोराया है उन सबका घर माल जपत कर दिया जाय, तदानुसार सेठजी के घरपर भी जपति मा www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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