Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 47
________________ (४४) हम फीर के इस नगरके अन्दर आये है नगरीमे जाना तो हमारा तब ही सफल है कि हमारे च्यारो पुत्र, च्यारो पुत्रोकि बहु और पहले कि साहयवी हो, नही तो हमकों मरजाना ही अच्छा है कुवरजीने कहाकि आपके बेठ बहुओ आ जावे तो कैसा? सेठजीने कहा कि आप मालक है मेरे दुःखीपर नमक क्यों लमाते हो हमारा एसा भाग्य हो तो जन्मभूमि क्यो छुटे बेठा बहुओका वियोग क्यों होवे इत्यादि दीन वचन सुनके सुरसुन्दर पल शुभे च्यार बक्ख उन च्यारो भाइयोको भेजा कि आप स्नान भजन कर वस्त्राभूषण धारण कर जल्दी तैयार हो जावे आज दरबारके मुजरे जाना है दो बक्त सेठ सेठाणिके लिये भेजा और आप भी स्नान भजन कर ओरतोका वनभूषण धारण कर तेयारी करली इस समय साइवान तंबु सबके अलग अलग था रत्नसुन्दरीका साइवान बिचमे अलग था सेठ सेठाणीके तंबुमे एक सिंहासन स्थापन कर उन दोनो देवताइ पुरुषोको याने सेठ सेठाणिको सिंहामन पर बेठा, के च्यारों भाइयोंको संकेत कीया वह च्यारो पुत्रो उधरसे आये इधरसे वह च्यारो ओरतो भी अपने तंबुसे निकल अपने अपने पतियोके साथ सेठजीके तंबुमे जाके सेठ सेठाणीके चरणकमलोमे शिर मुकाया उनो पुत्र ओर पुत्रोकि ओरतों को देख सेठसेठाणि सोचने लगे कि क्या हमको स्वप्ना आया है या कोई इंद्रजाल कि रचना है यह हमारा पुत्र और बहुओ कहांसे आइ यह सब हाल रत्नसुन्दरी देख रहीथी उसने सोचा-क्या मेरा पति ओरतका स्वरूप धारण कर नाटक करेगा यह क्या बात है इतनेमे तीन पुत्रोकि बहुओ बोली कि हे पूज्यवरो! हम सब उत्तम ऋद्धि और अपना कुशलता पूर्वक मीलाप होना आपके लधु पुत्रकी त्रि सुरसुन्दरीका ही प्रभाव है यह सुनते ही सब लोगोके आनंद मंगल से हर्ष के आश्रु आने लगे और छाती से छाती भीडा के अपने चीरकाल का विरह को शान्त कीया, आनंद मंगल के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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