________________
(५६)
हस्ती चाले एक, लख कुकर गलीयो लवे । वडपण तणो विवेक, रीश न आणे राजिया ॥६॥ 'सामन' पराया बागमें, दाख तोड खर खाय । हानि लाभ तो कुच्छनहीं, पण असही सही न जाय ॥७॥ जेसी संगत बेठीये, तेसी इजत थाय । सिरपर मखमल सेहरो, पनही मखमल पाय ॥८॥ दुष्ट संग वसीये नहीं, तासे दुर्गुन पाय । घसित वांसकि आगीसे, जरत सबी वनराय मधुर बचन से मीटत है, उत्तम जन अभिमान । तनक शीत जलसे मीटे, जैसे दुद्ध उफान ॥१०॥ दुष्ट न छोडे दुष्टता, बहुली शिक्षा देत । धोये ही सौ वार से, काजल होत न प्रवेत ॥११॥ बात कहन कि रीतमें, हे अन्तर अधिकाय । एक वचन रोसे चढे, एक वचन से जाय ॥१२॥ अति सरल बनिये नहीं, देखो ज्यु वनराय । सीधा सीधा काटतां, वंका तरू वचजाय ॥१३॥ हरत देवता निबल अरू, दुर्बल ही के प्रान । व्याघ्र सिंहको छोडके, लेत छागा बलीदान ॥१४॥ जो पहला किजे यतन, सो पीच्छे फलदाय । आग लगी खोदे कुँवा, कैसे आग बुझाय ॥१५॥ एकज ठोर सुजान खल, तजे न अपनो अंग । मणि विषहर विषधर सर्प, सदा रहत एक संग ॥१६॥ पर कर मेरू समान, आप रहे रज कण जीसा ।। धन्यपुरुष जगमोह, ज्यारो रामरूखालो राजिया ॥१७॥ कूडा कूड प्रकाश, अणदीठि हाके इसी । उडति फीरे आकाश, रंजन लागे राजिया. ॥१८॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com