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(५४) वैराग्यपूर्वक रत्नपालको राज दे दीक्षा ली वह विहार करता एकदा चम्पानगरी आये-महिपालादि उपदेश श्रवण कर अपने पुत्रोको गृह भार सुपरत कर च्यारो भाइ पांचो ओरतो कामसेन मुनि पासे दीक्षा ग्रहन करी शुद्ध चारित्र पाल के सब जीव आठवे देवलोक गये वहांसे क्रमसर मोक्ष जावेगा. परन्तु सुरसुन्दरी एकावतारी थी अस्तु। कर्मबन्ध विषयपर और संसारके चित्र दीखानेमे यह प्रबन्ध बडा ही उच्च कोटीका है श्रोतावर्ग श्रवण कर कर्मबन्ध हेतुसे डरे और धर्मकार्य साधनेमे विशेष प्रयत्न करे इति समाप्तम्"
अनुबादक-श्री पार्श्वनाथ प्रभु के पाट शुभदत्त गणधर हुषे उनोके पाट श्री हरिदत्तसूरी हुवे उनके पाट श्री आर्य समुद्रसूरी हुवे इनोके शासनमे बुद्ध कीर्ती साधुसे बौधधर्म प्रचलीत हुवा । उन आर्यसमुद्र सूरीके पाट श्री कैसी श्रमण कुमार हुवे उनोने प्रदेशी आदि १२ राजाओंको प्रतिबोध कर जैनी बनाया था उनके पाट श्री स्वयंप्रभ सूरी हुवे जिनोने भिन्नमाल नगरमे ९०००० घर जैन श्रीमाली बनाया ओर पद्मावती नगरीमें ४५००० घर जैन पोरवाल बनाये उनके पाट श्री रत्नप्रभसूरी हुवे जिनोने ओशीयो नगरीमें ३८४००० घर जैन ओसवाल बनाये उनोंके पाट श्री यक्ष देवसूरी हुवे जिनोने राजग्रहनगरमे मणिभद्र यक्षका उपद्रव को मीटा १२५००० जैन बनाया उनोके पाट श्री ककसूरीजी हुवे जिनोने कनोज देशमें जाके लक्ष जीव यज्ञमे बलीदान करते को छोडा के लाक्ष गम जैन बनाया उनोके पाट श्री देवगुप्तसूरी हुवे जिनोकी सेवा राजा महाराजा तो क्या परन्तु अनेक देवी देवता करतेथे जिस्के जरिये बहुतसे बौधोको जैन बनाया उनके पाट श्री सिद्धसूरीजी महाराज हुवे जिनोका विद्याबल इतना तो चमत्कारी था कि जैन शासनका बडा भारी उद्योत कियाथा पीछले पांचे आचार्यों के क्रमशः
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