Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ (४८) पूर्व धर वढ ही धैर्य गंभीरीय सुमति गुप्ती प्रतिपन्न भवभ्रमन करते हुवे भव्य जीवोको तारणेके लिये नौका समान थे। इस बातकि सहर्ष वनपालक-राजाकों वधामणि दी राजा बहुतसा द्रव्य दीया बाद नगरको सुशोभीत कर च्यार प्रकारकि शैना और बडे ही आडम्बरके साथ सूरीजी महाराजको वन्दन करनेको गये इघर नागरीक स्नान मजन कर गृह देरासर कि पूजन कर बाहार जाने योग्य वख भूषण धारण कर केइ हस्तीपर केर अश्वपर केइ रथपर केइ मैना पीजसपालखी सेवाका युग. पात् तामजान ओर केइ पैदल भगवान् को वन्दन करनेको गये विधिपूर्वक वन्दन नमस्कार गुण स्तुति कर अपने अपने योग्यत्ता माफीक सब लोग सूरीश्वरजी की सेवामें बेठ गये । सूरीश्वरजी महाराज अपनि मधुर ध्वनिसे अमृत देशना देणी प्रारंभ करी । हे श्रोतागण! इस आरापार संसारके अन्दर अनेक जीव अनादि कालसे परिभ्रमन कर रहा है जिसके मुख्य कारण रागद्वेष विषय कषाय आलस्य निंद्रा विकथा मद अहंकार ईर्षा परनिंदा अव्रत मिथ्यात्व कुगुरु कुदेव कुधर्म कुशास्त्रपर श्रद्धा इन कुकृत्योंसे सूक्षम बादर निगोदमें यह जीव अनंतकाल भ्रमन कीयाथा कुच्छ पुन्यवान होनेसे पृथ्वी अप तेउ वायु इन च्यारों कायमे असंख्यात् काल जन्म मरण किया वनस्पति प्रत्येक साधारण सूक्षम बादर के अन्दर अनंतकाल रहा कुच्छ कर्म स्वभावे पतले होते ही यह जीव बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय चोरीन्द्रियमे संख्यात काल जन्म मरण कीये बाद मे पांचेन्द्रियमे आया तीर्यचसे नरकमें गया अनंत शितोष्ण क्षुधा पिपास ज्वरादि तथा क्षेत्र वेदना परमाधामी कि करी वेदना को सहन करी तीर्यचमे जलचर स्थलचर खेचरादिकि अलग अलग योनिमें प्रत्येक सौ सागरोपम रहा मनुष्य मे समुत्सम गर्भेज अनार्य जेसे धीवर भील खटीक कसाह मच्छीमार तैली तंबोली रंगरेज वणीक वैश्यादि अनेक भव कर www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62