Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 54
________________ (५१) रत्न रहा था वह सेठाणीको देने लगे तो सेठाणीने कहा कि मेरेते इन रत्नोका रक्षण न होगा आपकों विश्वास हो वहां रख विनिये नब ऋषभदासने अपने धर्मी भाइ जिनदास के वहां पांच रत्न रख दीया और आप दीसाधर गया तीन वर्ष तक सनगार कीया निस्मे करीबन पांच लक्ष रूपैये कमाया. बाद अपने देशमें आने लगा तो अपने नगरके पास आते ही रहस्तेमे चौर मीला वह सबका सब माल लुट लिया सेठजी धोती लोटा गमाके घरपर आये सब हाल सेठाणी को कहा सेठाणीने कहा कि कुच्छ फीकर नही आप कुशल पधार गये इस बात कि हमे बहुत खुशी है हमारे पास यह जवेरायत है इसे घेच के काम चलाइये अब भी माप खरचे को कम कर दीजिये । सेठजीने कहा कि दागीमा कीस वास्ते वेचे अबी तो मेरे पास पंचरत्न है आप रत्न लेने को जिनदास के यहां गये भाइजीने कुशलता के समाचार पुच्छे रुषभदासने सब हाल सुनाये. सेठजीने सोचा कि अगर इस बरूत जो पांचो रत्न में नही भी दूंगा तो मुजे कोइ चौर न कहेगा पस दर्विचार से जिनदासने कहा कि कहो भाइ कुच्छ काम होतो रीषभदासने कहा कि मेरा पांच रत्न आपके वहां रखा था वह दे दीजिये सेठजीने कहा कि क्या रहस्तामे चोरने तेरे को लुटा बह देर चारज मेरे पर रखता है भाइ अगर तेरे पांच रत्न होता तो तुं दीसावर कबी जा सकता था? भाइ! कमाके खाने कि आस रखो एसे आपको रत्न नही मीलेगा। परन्तु रीषभदास ठीकाणधारी था वहांसे चुप चाप उठके चिंतातुर ही अपने घरपे चला गया. सेठाणीसे सब हाल कहा तो सेठाणीने कहा कि सेठ साब आप कहांपर भी बात न करना. प तो ठीक हुवा कि अपने इस भवमें ता जैसे तैसे काम चला लेंगे परन्तु पर भवमे मी तो कुछ चाहिये गा यह ले जाइये मेरी रकम इतेव के अपना कार्य चलाइये मोरतने सेठजी को धर्यता दे के चित्त को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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