Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 52
________________ ( ४६ ) नरक तीर्यच मे गया कदाच अकाम निर्जरासे देव हुआ तो परमाधामी अभोगीया आसूरीकाय किल्बिषिया आदि योनिमे अ मन कीया था कदाच कीसी भवमे घुर्णाक्षर न्यायसे व्यवहारादि समकित प्राप्त हुइ उसे भी अनेक कारणोसे दोषित कर भव भ्रमन कीया था यद्यपि इस समय आप लोगोकों मनुष्य भव आर्य क्षेत्र उत्तम जाति कुल शरीर निरोग्य पूर्ण इन्द्रिय दीर्घायुष्य पवित्रधर्म कि प्राप्ती सद्गुरु समागम सिद्धान्तका श्रवण मीला है अब इसपर श्रद्धा प्रतित लाके पुरुषार्थ करना आपके अक्तीया रहै अगर यह अलभ्य लाभ मीलने पर भी कोई विषय कषाय मे खोदेंगा तो फोर वारवार यह सुअवसर मोलना कठिन है वास्ते हे भव्य श्रोताओ आप मोक्षके कारण दांन शील तप भाव भावना क्षमा दया संतोष परगुणग्रहन ज्ञानध्यान आसनसमाधि प्रभु पूजा गुरुसेवा वात्सल्य प्रभावना ज्ञानमें नय निक्षेप द्रव्यगुण पर्याय द्रव्यभाव द्रव्य क्षेत्र कालभाव उत्सर्गापवाद सामान्य विशेष कारण कार्य निश्चय व्यवहार प्रमाण अधि आधार गौणमुख्य हिय गय उपधय ध्य ध्यान ध्यानि ज्ञय ज्ञान ज्ञानी इत्यादि स्याद्वाद सप्त भंगी अष्टपक्षको सम्यक् प्रकार से ओलखो यह ही मोक्षका मार्ग है इत्यादि देशना के अन्तमे सूरीश्वरजी महाराज ने फरमाया कि मुनि धर्म और श्रावकधर्म यह दो मार्ग खास मोक्षका है जैसी शक्ति हो उसे धारण करे परन्तु लोये हुवे व्रत पूर्णतय आराधन करे तांक जघन्य एक उत्कृष्ट पन्दरा भवसे अवश्य साश्वते सुख मीलेंगे । इस अमृतमय देशनाका पान कर श्रोतागण आनंदमय बन गये इतनेमे धनदस सेठ खड़ा हो बोला कि हे भगवान् आपका फरमाना अक्षरांश सत्य है इस संसारका यह हो धर्म है हे भषतारक दीनबन्धु ! में एक अर्ज करताहु कि मेरी इस भवमे तीन ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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