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अवस्था हुइ है तो आप ज्ञानवन्त है फरमाइये कि मे कोनसा भधमे कैसे पाप कीया तांके मुझे सकुटुम्ब १२ वर्ष दुःख सहन करना पड़ा इस प्रश्रको श्रवण करनेकि उत्कण्ठा सब परिषदाको हो रही थी सूरीश्वरजी महाराज अपना दिव्य ज्ञानद्वारा कहते हुवे कि हे श्रेष्ठिन् ! एकाग्र चित्तकर श्रवण करो कि जीव कर्मबान्ध ते समय यह विचार नहीं करता है कि भविष्यमे यह कर्म हमे भोगवना पडेगा. सहज ही मे कर्मबन्ध करलेते है वह बडीभारी मुशिबतोंसे भोगवीये जाते है। आप अपना भव ध्यान लगाके सुनिये। इसी जम्बुद्विपके भरतक्षेत्रमें चन्दपुर नामका नगरथा वहांपर एक जिनदास नामका वडा ही धनाढ्य सेठ था जिस्के सुन्दर भार्याथी च्यार पुत्र और च्यार पुत्रोंके ओरते आनंदमे काल निर्गमन करते थे सेठजी श्याम सुवह सामायिक प्रतिक्रमण प्रभु पूजादि धर्मकार्य भी कीया करते थे परन्तु धनपर सेठजीका चित्त अधिक लोभी था उसीनगरमे एक ऋषभदास नामका पुरांणा सेठ रहता था. उनके घरमें नंदा नामकी भार्या सुशील दीनोद्धार लक्ष्मी अवतार गृहश्रृंगार ओर गृहकार्यमें वडी कुशल पति आज्ञापालक धर्मकार्यकारक इत्यादि महिला गुण संयुक्तथी सेठजीके मोकर चाकर भी बहुत थे फाजुल खरचा भी कम नहींथा वह ठकुराइदार पुरांणा सेठ था-हे श्रोता! आप जानते हो कि लक्ष्मी चंचल है सेठजी का हाथफाजुल खरचोंसे तंग होने लगा तब सेठाणीने कहा कि सेठजी आपका हाथ तंग हो तो आप फाजुल खरचे को कम कर दोजिये परन्तु रूढी के गुलाम सेठजीने अपनि जगाहा जमीन गहना दागीने को घेचा किन्तु खरचा कम नही कीया सेठजी को सरम आती थी कि वडेरोंसे चला आया खरचे को कम कैसे करे एवं सेठजी का हात विलकुल तंग हो गया सेठाणीने बहुत समजाया परन्तु सेठने एक भी नही मानी आखिर यहां तक बन गया कि लोटा धोती लेके दिसावर जाने कि तयारी हुइ सेठजी के पास पांच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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