Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 46
________________ (४३) नगरकि तरफ चले.सुरसुन्दर एक महान् नरेशकी माफीक लाव लस्कार के साथ अग्र पयाण कीया एकेक जोजनकि मजल करता जन्मभूमिकि तर्फ चल रहा है रहस्तेमे जिस स्थलमे पुरांणे मन्दिर हो उनोका जिर्णोद्धार ओर जीस ग्राममे मन्दिर नही है वहां नया मन्दिर अनाथ भाइयोके लिये अनाथाश्रम विद्यार्थीयोंके लिये विद्याशाला और दानशालादि करानेसे पुन्योपार्जन करते हुवे क्रमशः चम्पानगरीसे एक जोजन दुर पडाव कीया उस लस्कार की रजसे आकाश छा गयाथा. ज्योतीषी मंडल भी त्रास पाने लग गयेथे। चम्पानगरीके राजाको भी बडा भारी क्षोभ होने लगा की यह कोन वैरी भूमिया राजा मेरेपर चढ के आया है इत्यादि इनोकि खरणी के लिये तजबीजे हो रही थी नगर लोक भी गभराने लग गयेथे. इधर बारहा वर्षोंसे दरबार खुद पैसीयो मुकदमे मीसलो तपास कर रहेथे पहलेही मीसल । धनदत्त सेठकी आइ तो उनोका घर हाट धनमाल सब जपत कर दीया गयाथा परन्तु उनोके अन्दर कशुर क्याथा इसकि कुच्छ भी तहकिकात नही ओर नही सेठजीके व्ययन. दग्बारने घडेही जोरसे दीवाण साब पर हुकम लगाया कि बुलावो सेठजीको उनका ब्ययन लिया मावे. दीवानसायने कहा कि सेठजीको तो बारहा वर्ष हुवा यहांसे दिसावर चले गये है। राजाने कहा कि वहां आप ठीक राजकि देखरेख करते हे हमारे नगरमे अग्रेश्वर सेठको आपने निकल दीया है इसका तो फल आप सबको फीर मीलेगे. मेरा हुकम है कि २४ घंटेमे सेठजीको हाजर करो वह सुनके दीवामादि सब सरकारी कर्मचरिय गभराने लगे और इधर उधर मादमियोको भेजे कि जहां हो वहांसे सेठजीका पत्ता लगायो । उदर कुँवरजी सेठ सेठाणोके पास आये और बोले कि क्या सेठजी! आपकि चम्पानगरी आ गइ है क्या आप अपने नगरमे जावोगें सेठजीने कहा कि महेरबान हमारे कमनसीब है कि www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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