Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 44
________________ (४१) करते है। तीनों लालों सेठजीद्वारा कुँवरको पहुँच गइ । अब इंवरनीने सोचा कि यहां से कीस रीती से रवाना होना कारण पहले कहा था कि हम गुप्त रीती से आये है देखीये पाणीवाले इन्सानो की आपकि सब बातेपर आने देना पड़ता है। सुरसुन्दरने एक खत याने कागद-परवाना बनाया जिसमें लिखा कि रानराजेश्वरो श्रीमान् कामसेन नरेश कि सेवामे मु. कंचनपुर योग लिखी चम्पापुरी से जयशत्रु राजा का प्रणाम वाचना यहां कुशल तथास्तु विशेष अर्ज यह है कि हमारे च्यार पुत्र नाराजी से चले गये है आपके यहां आये सुनते है अगर यह बात सत्य हो वह कुंवरजी आपके वहां आये हो तो कागद देखतो के साथ तुरत रवाना कर दीरावसी हम आपका आसान समजेगे; कारण हम सब लोग कुंवरजी विगर बडे दुःखी है योग्य कार्य लिखावे इत्यादि समाचार लिख एक वृद्ध मनुष्य के शरीरपर रब लगा के कहा कि तुम बारहा बजे कि टैम में जब दरबार कचेरीमे आवे तब यह परवाना लेके आना । उस बुढे आदमिने एसा ही कीया वहां सब लोग उपस्थित थे उस समय सभामें लाके वह परवाना दीया दरवार प्रधानजी को दीया उनोने पढके सुनाया इतने मे कुंघरजी साब क्रोधातुर हो बोल उठे कि हम लोगोने मापसे पहले से ही अर्ज कर चुके थे कि आप हमारे पिताश्रीको सबर न दे। दरबारने कहा सा हमने तो कुच्छ भी खबर नही हीथी आजकाल आप नगर मे बहुत फीरते हो अगर आपके महांका कोई वीणजारा वैपारी आपको पीछान के वहां समाचार कह दीया होगा । हमने तो हमारी पुत्री देके पुत्र लिया है हमारे राज करनेवाला कोन है अर्थात् हमारे राज के मालक तो भाप ही है हमे क्या नुकशान थी कि हम वह समाचार कहलावे इत्यादि प्रेम की बातें हो रही थी उस समब कँवरजी बोला कि कुछ भी हो अब हमारा राना नही होगा वास्ते हमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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