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वाणित्र बाजने सरू हुवा नगारा निशांन घुरने लगे. सब लवाजमाके साथ लस्कार वहांसे चम्पापुरी कि तर्फ विदाय हुवा एक दुत्तको आगे नगर मे वधाइ देने को भेजा था वह नगरपोल के पास आ रहा था इतनेमे दोवोनसाब का दुत्त सामने मीला कि भाप कहा जाते हो? मे जात्ता हु नगरमे खुशखबर देनेको कि आन धनदत्त सेठ अपने कुटम्ब ओर वडी ऋद्धि के साथ आये है। वह दुत्त बोला कि आप यहांपर ही ठेरीये. में जाके दोबानसाबकों इतला देता हु वस वह दुत्त नगरमे गया दीवानसाब को खबर होते ही दीवान राजाको खबर दी कि आपके सेठजी इस लाव लश्कर से आता है राजाने नगरको श्रृंगारा. सब नागरीक लोक वदावा सामग्री लेके सहागण बेहनो श्रृंगार कर सिरपर पूर्णकलश और मंगलीक गीत गावती हुइ माली लोग पुष्पो कि चंगेरीयों और फल फूल इत्यादि छतोसो कोम सेठजी के सामने गये राजा अपना लाव लश्कर पाटवी हस्तीपर आरूढ हो सब सरकारी कर्मचारिय दीवान प्रधान फोजदार हाकिम जमादार ओर लश्करी लोगों के परिवारसे सेठजी के सामने गया सेठजी के सगे संबन्धी लडकोंके सासरेवाले विगरे सरमीदे हो वह भी सामने गये. इतने तो लोक एकत्र हुवे कि पृथ्वीपर पग देने को स्थानतक भी मुश्केल से मीलता था वाजिंत्रोके मारा अमर गर्जना कर रहा था । आकाश चारी देव और विद्याधर भी दो घंटे के लिये गमत्त देखने को ठेर गये थे दरबार कि असवारी नगर के बाहार बगेच तक पहुंची इतनेमे सेठजीका बल आकाशमे गर्जना करता हुवा आया सेठजी दरवार को देख अपने हस्ती से निचे उतर दरवार के सामने आये दरबार भी सेठजी का बड़ा ही आदर सत्कार कर नगर प्रवेश कराया और उनो कि मकामायत विगराह सर्व धन सेठजी को सुप्रद कीया. चारण भाट याचको को सेठनीने अनगीत द्रव्य दे संतुष्ट कीया. नगर के सब लोग
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