Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ ( ३६ ) कर वह चाराभाइ कहने लगे कि हे गरीब निवाज । हम हमारे दुःखोकि बातें मुहसे कह नही सकते है हम जाने या ईश्वर नाने. तद्यपि आप सज्जन पुच्छते है तो सुनिये हम चम्पा नगरोंके अन्दर धनदत्तसेठके पुत्र है हमारा विवशाय के बारेमे हम स्वश्लाघा करना नही चाहाते है किन्तु एक अबन पैतीसक्रोड सोनइयोका द्रव्य था वह अशुभ कर्मोदय छे घंटेमे बरबाद हो गये तब हम वहां से निराधार हो रात्री मे भाग छूटे तो रहस्ते कि कर्म कहानि कहां तक कही जावे इतना कहते ही च्यारो भाइयो को मुर्च्छा आगइ दुःख एक अजयब वस्तु है बात भी ठीक है एसा कोन मनुष्य बब्रहृदयवाला है कि एसे दुःख सुनते समय नैत्रोमे आंशु न आवेगा सावचेत होनेपर और बोले कि उस छे मास के दुःखको भोगवते सहन करते हुवे यहांपर आये हमारे यह लघुभाइ है इस्की ओरत सुरसुन्दरीने अपने घर से एक लाल लाइथी वह हमारे पीताजी को दी पिताजी हमकों बुलवाके खुब नशियत के साथ वह लाल बेचनेको हमे बजारमें भेजे यहां पर भी हमरे कर्मयोग एसा सेठ मीला कि वहलाल घोखाबाजीसे ले हमारा तिरस्कार कर हमे निकाल दीया उस बख्त दुःख के मरे हमे मुच्र्छागत अगइथी बस इतना कहके और मुच्छत हो गये. शितल पवन और जलसे साबचेत हो बोले कि बाद हमने विचाराकी अब जाके मुह कैसे बतलावे इस इरादासे हम यहां मजुरी करते है यह संक्षिप्तसे हमारी कर्मकथा है कुंवरजी सुनते सुनते केइ दफे नेत्रो से आंशु निकालेथे और विचर किया कि अहो कर्म अहो कर्म नमस्कार नमस्कार 충 इस प्रबल कर्मोंकों । खेर उन च्यारे भाइयोसे कहा कि अब क्या तुमको बजारमे वही मजुरी करना है या हमारे यहां रहोगें ? महिपालने जबाब दीया कि अगर आप हमे रखना चाहते हो तो हम बडी ही खुशीके साथ रह सकते है हमको तो रोटी कपडेकी मरूरत है कुंवरजीने कहा कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62