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मकान फीका पक्कन मोटासा पेट लम्बासा कान. जाडीसी गादी दीपकका उजाला केसरका तीलक कपुरकी माला छोटासा कपाट बडासा ताला. पांचसोकि पूंजी और साठसोंका दिवाला" वहां महिपालादि च्यारो भाइ उस सेठजीकी दुकान जाके लाळ पताइ क्यों सेठजी आपको यह लाल लेणी है सेठजी लाल हाथमें लेते ही चकित हो गये कि मेने मेरे जन्मभरमे पसी बहु मूल्य लाल नही देखी है और लानेवाले कोइ भीलसा दीखाइ दे रहे है यह भी तो कहांसे चुराके लाये होगे अगर इस्को न्यादा पुच्छ ताच्छ करेंगे तो इसका मालक सरकार बन जायगा इसे तो बहतर हेकि इस्को डबेमें डाल देना. शेठजीने तो तस्कर वृतिकर उस लालको डबेमें डाल ही दी वे च्यारोभाइ बोले कि सेठजी अपने लालका मूल्य भी नही कीया और डबेमे डाली तो खेर हमारा मूल्य दे दीजीये । सेठजीने अपने नोकरसे कहा कि इनको हलवाइकी दुकानसे पुरी आचार दीरवा दो. यह सुनके महिपाल बोला कि सेठजी हमारा असमान पताल एक होता है हमारे दुः. समें इतना ही आधार है एसे न करे हमारी लाल वापिस दे दे ! सेठजीने कहा कि कोनसी लाल क्या बोलते हो क्या तुम लाल के योग्य होहमने तो तुमारी लाल देखी भी नही है इत्यादि बोलने के साथ ही वह च्यारो भाइ रुदन करने लग गयो बहुतसे आदमि एकत्र हुवे सेठजीने कहा कि मेतों इस गरीबों को पुरी आचार दीराणेकि निष्पत् बुलाया था इसपर भी इनोंने मेरेपर लालका मुटा आक्षेप कीया है में अबी पुलीसको लाके इनोको रोक दूंगा बस महान् दुःखसे दुःखीत हो वह च्यारोभाइको लालसे हाथ धोना परा. इसपर उन च्यारों माइयोको बराभारी दुःख हुवा और दिलमें यह विचार पैदा हुवा कि अपने पिताश्रीने इतनि हित शिक्षा देनेपर भी अपने हाथोंसे लाल गमादी तो अब जाके पितादि को मुंह कैसे बतलाये इस कुविचार से वह ज्यारो भाइ मुलखंडे के
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