Book Title: Mahasati Sur Sundari
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 27
________________ (२४) बजारमें जाके हमाली याने मजुरी करना सरु कर दीया। पीच्छो. डी वह मातापिता और ओरतों रहा देख रहे थे कि अबभी आवे अषभी आवे अगर कोइ तांगा आता देखते थे तब उन लोगोको बडी भारी खुशी आतीथी कि वह तांगा अपने ही लिये भेजा होगा दर असल तांगा आनेपर उसे निरास होना पड़ता था इस राहाराहमें सूर्यास्ताचलपर चला गया. रात्रीमें उस वनमे बेठे हुवे वह छेओ जीणे रूदन कर रहेथे दुर्विचार कर रहेथे कि वह च्यारे भाइ लाल वेचके क्रोड द्रव्य लेके भाग गये होगे हमे दुखीयोंको वह क्यों याद करते होगे कारण कि तृष्णा जगतमें महान, भयकर विश्वासघात दुराचार कराणेवाली है एक कविने कहा है कि "तृष्णा आग अपार, तृष्णा जग भिख मंगावे. तृष्णा अत्याचार तृष्णा सब ज्ञान भूलावे, तृष्णा करे फजीत तृष्णा ले केद करावे. तृष्णा कटावे सिस, तृष्णा नर नरक दीखावे, मात पीता और सजनों तृष्णा गीन न एक,ज्ञानसुन्दर समता धरो प्रगटे गुण अनेक" इस दृानसे रात्री व्यतित करी जब प्रभात हुवा तब सुरसुन्दरी दुसरी लाल लाके सुसराजीके निजर करी पहले कि माफीक सेठजीने सुरसुन्दरीका सत्कार कीया. और आप बजारमे जाने लगे तब सुरसुन्दरीने अपनि सासुसे कहा कि आप अपनि लजा छोड सेठ. नी के साथ पधारीये कारण पुरुषोंको पैसाका लोभ बहुत होता है एसा न हो कि पहले जो आपके च्यारो पुत्रोंने विश्वास दीयाथा बहुके कहनेसे सेठाणीजी भी साथमें गये. बजारमें चलते चलते कर्मयोगसे उस लेभागु सेठ कि दुकान पर जा पहुंचे सेठजी उस दूसरीलालको देख सोचा कि पक कानमे कुंडल शोभता नही था परन्तु जोडके लिये यह ठीक आ गया उसी धोखासे इनोकी भी लाल डबेमे डाल उनोका वडा भारी तिरस्कार कर निकाल दीया बह सेठ-सेठाणी भी निरास हो महान् दुःखसे दुःखीत हो अपना मुंह बहुओंके बतलाने मे लजित हो नगरमे चले गये। उन निराShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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